जय मां हाटेशवरी.....
स्वप्न मेरे कुछ भूले बिसरे
कागज को तरसे बरसों
सादर नमन......
आज के आनंदमय सफर में.....
कुछ भूली बिसरी और प्यारी-प्यारी रचनाएं......
कि बेटी चाहती है अब !
मैं वो बेटी हूँ जो है जानती
हर भाव को पढ़ना ॥
मैं इतना जानती हूँ
बाप को इज़्ज़त बड़ी प्यारी ।
उसी इज़्ज़त की ज़िद पर
बेटियाँ जाती रहीं मारी ॥
हमें तो अश्रुओं में डूबकर
आया सदा बचना ॥
मेरे मन के सलोने भाव
तुमसे और माँ से हैं
मेरे विश्वास की पूँजी
जुड़ी ही मायके से हैं
अतः ये ध्यान रखना कि
नज़र को न पड़े गिरना ॥
वहाँ मैं संस्कारों का
तुम्हारे मान रक्खूँगी ।
माँ की यादें,
कभी एक-दो दिन बात करना भूल क्या जाता मैं कि
तुझे होने लगती थी मेरी भारी चिंता
और तू शिकायत के साथ फोन मिलाती मुझे
फिर पूछने बैठती-
'क्यों, क्या, सब ठीक तो है, मुझे बड़ी चिंता हो रही है'
ऐसे जाने कितने ही सवाल एक साथ दाग देती
मैं चुपचाप सुनकर तुझसे कहता-
'तू हमारी नहीं अपनी चिन्ता किया कर
तू हमारी चिन्ता करके क्या करेगी?'
मेरे यह कहने पर तू मुझे समझाती-
'बेटा, मां हूं न इसीलिए सबकी चिंता-फिकर करती हूं'
कड़वा सच
लड़खड़ा कर गिरते स्वाभिमान को संभालते हुए चेतना ने
गंभीरता से कहा ।
इस कड़वे सच को सुन व्यवहारिकता इतरा रही थी और परम्परा
के झुके माथे पर चिन्ता भरी सिकुड़न थी ।
सच्ची मित्र ये किताबें
देती हैं जीवन को गति,
शुद्ध-बुद्ध होती है मति।
मिटाती हैं ये अंधकार,
ज्ञान का ये करती हैं प्रसार।
हैं ये जीवन का दर्शन ,
विचारों का करें संवर्धन।
मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है..,
आँखे जैसे सूरज की पहली किरण,
तेरा चेहरा जैसा दुवा सा हैं,
नदिया गिरती रही मौजे जुड़ती रही,
बोझ वही अब भी दिल पे धरा सा है
दिन निकलता हैं ना कालिया खिलती है,
चंद रोज़ से वो शोख़ खफ़ा सा है....
धन्यवाद।
सुंदर गुलदस्ता
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
लाजवाब सूत्र संयोजन । बेहतरीन सूत्रों से सजी सुन्दर प्रस्तुति मे मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत आभार कुलदीप जी! सादर वन्दे!
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