मन भी कुछ समझ नहीं पाता है।
जाने क्या पता इसकी क्या मजबूरी है?
किस बात के लिए खुद की मंजूरी है?
जो हर राज़ को सभी नजरों से बचाता है,
जब जब सुलगती दिल में विरहा की आग,
तब तब करवटें बदलता है अंदर अनुराग ।
राह निहारते हुए अंखियां थक जाती जैसे,
फिर एक मधुर उम्मीद जगा देती है रैन ।
जानी पहचानी सूरत भी अब, अंजानी सी लगती है
भरे हुए तरक़श यादों के,इस दिल पर तीर चलाते हैं
भूल हुई यों दिल का लगाना, वो दिन याद दिलाते हैं
झर- झर आँसू सूख गए अब अंगारों से नैन हुए हैं।
नाराजगी को भ्रम बतलाऐगी;
अलपक देखता देख मुझे ;
शर्माऐगी ,मुस्कायेगी ;
हल्की थपकी गालो पे लगा जायेगी|
भारतीय काव्य शास्त्र, भक्ति, दर्शन और चिन्तन यह स्थापित करते हैं कि प्रेम का वास्तविक आनंद प्रिय के व्यक्तित्व में खुद को लीन कर देना है। ‘बारिश-सी लड़की’, ‘शुकराना’ और ‘गल्र्स स्कूल की लड़कियाँ’ कविताओं में स्त्री के उन्हीं मनोभावों को सार्थक एवं मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति दी गई हैं। इसमें भी बिम्ब-विधान ऐसा कि पाठक सहसा कह उठे–वाह! ‘लड़की ने धूप से बचने को एक छतरी मांगी/ लड़का दौड़कर गया और बारिश का मौसम उठा लाया।’ भीगते हुए लड़की का बारिश बन जाना, लड़के का उसी बारिश में फिर भीगना प्रेम के साथ हुआ व्यक्तित्वांतरण है जो प्रेम से हार्दिकता, साहचर्य, संयोजकता, परार्थपरता, अनन्यता, आस्था-विश्वास, दृढ़ता, अक्षुण्णता, निर्भयता, मंगल और आनंद की मांग करता है।
प्रेम पर्व को बहुत सही ढंग से उकेरा इस अंक में
जवाब देंहटाएंआभार
सादर नमन
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी दी,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत बहुत अच्छी लगी।
प्रेम की भाषा सृष्टि में सबसे आसान भाषा है।
विषय आधारित शानदार संकलन दी।
सादर।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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