शीर्षक पंक्ति:आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक के साथ हाज़िर हूँ।
लीजिए प्रस्तुत हैं आज की पाँच रचनाओं के लिंक्स-
लेकिन मैं
स्मृतियों के
निराले संसार में
जिंदा रहूंगा
खोलूंगा
जंग लगी चाबी
से
किवाड़ पर
लटका ताला
ताला जैसे ही
खुलेगा
मानव बड़ा खोटा
पहनकर स्वार्थ की पट्टी
है खेलता खेला
उथलकर काल की घट्टी
दलदल बनाता है
निशाना भी स्वयं पहला।।
दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ
झूठे, अंधे गुरु घणैं,
बंधे विषै विकार।
दादू साचा गुरु मिलै, सनमुख सिरजनहार।
अर्थात संसार में चारों और झूठे और अंधे, कपटी गुरुओं की भरमार है, जो विषय विकार में स्वयं बंधे हुए हैं। ऐसे
में यदि सच्चा गुरु मिल जाय तो समझ लेना चाहिए कि उसे साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो गए।
गुरु सच्ची
राह दिखाते हैं ।
अज्ञानता को
दूर भगाते हैं।
गुरु सच्चे
साधक हैं जग में,
और अमृत उनकी
वाणी है।
और अब चलते-चलते एक सारगर्भित लघुकथा-
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
उम्दा सामयिक लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सराहनीय लिंकों का चयन, शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंगुरु पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर सौम्य हलचल सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को पांच लिंक पर शामिल करने हेतु हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत अच्छे और सुंदर लिंक को संजोया है
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आपको
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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