फणीश्वर नाथ रेणु के मैला आंचल से श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी तक जो गांव थे, आज भले ही उनका ढाँचागत स्वरूप बदल गया है पर शहरीकरण के इस दौर में भी गांवों में अभी भी बहुत कुछ बदला नहीं है। ऊँच-नीच,छुआ-छूत,अंधविश्वास,
अंधपरंपराओं,ओझा-गुनी,डाइन जैसे कुप्रथाओं की लंबी सूची है ऐसे ही परिवेश में पली-बढ़ी एक स्त्री की संघर्षों की गाथा का अनुमानभर ही लगा सकते हैं हम और आप। जी,हाँ मैं बात कर रही हूँ पिछड़े समाज की भट्टी में ख़ुद को गलाकर, तपाकर कुंदन सी निखरकर देश के सर्वोच्च पद पर सुशोभित हुई माननीय महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी की।
महात्मा गाँधी,विनोबा भावे, भीमराव अंबेडकर जी के द्वारा
वर्षों पूर्व देखे गये स्वप्न का साकार होना किसी उत्सव से
कम नहीं है।
आइये हम सब राजनीतिक एजेंडा, रणनीतियों, दलीय मतभेदों,वैचारिक क्षुद्रता से परे एक अकल्पनीय संघर्ष से सफलता की यात्रा का हृदय से सम्मान करें।
जिस प्रकार हम लगातार एक ही भोजन से ऊब जाते हैं उसी तरह से शरीर को भी एक जैसा लगातार व्यवहार पसंद नहीं उसे वह आदत में ढाल लेता है और उसका फायदा उठाना बंद कर देता है , ठीक वैसे ही जैसे बरसों तक साइकिल चलाने वाले को साइकिलिंग का न मिलने वाला लाभ और गांव से कस्बे जाकर नौकरी करने वाला 10 km रोज पैदल आना और जाना बरसों से करता है और उसे कोई फायदा नहीं होता !
आज का समय केवल विरोध करने का है , भाषा के मामले में सभ्यता का पतन हो रहा है । मात्र विरोध के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना और मज़ाक बनाना आम हो गया है । भले ही राष्ट्र का सर्वोच्च पद ही क्यों न हो । ऐसा भी नहीं है कि इस पद पर पहली बार कोई महिला का चयन हुआ है , यदि इस शब्द से आपत्ति थी तो तब ही इसका विकल्प सोच लेना चाहिए था । खैर .....विचारणीय भूमिका के साथ उत्सव में शामिल हैं । सभी सूत्र लाजवाब हैं ।नए ब्लॉग भी मिले लेकिन फॉलो नहीं कर पाई , सुंदर चयन के लिए आभार ।
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मानदार, शानदार, जानदार अंक
जवाब देंहटाएंमास श्रावण का दूसरा पक्ष
शुभकामनाएं
सादर
शहरीकरण के इस दौर में भी गांवों में अभी भी बहुत कुछ बदला नहीं है।
जवाब देंहटाएं–सत्य कथन
बदलकर भी शहर में भी कहाँ कुछ बदला है जुमलेबाजी में
–उम्दा संकलन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज का समय केवल विरोध करने का है , भाषा के मामले में सभ्यता का पतन हो रहा है । मात्र विरोध के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना और मज़ाक बनाना आम हो गया है । भले ही राष्ट्र का सर्वोच्च पद ही क्यों न हो । ऐसा भी नहीं है कि इस पद पर पहली बार कोई महिला का चयन हुआ है , यदि इस शब्द से आपत्ति थी तो तब ही इसका विकल्प सोच लेना चाहिए था । खैर .....विचारणीय भूमिका के साथ उत्सव में शामिल हैं ।
जवाब देंहटाएंसभी सूत्र लाजवाब हैं ।नए ब्लॉग भी मिले लेकिन फॉलो नहीं कर पाई , सुंदर चयन के लिए आभार ।
अच्छा लगा यह अंक, लिंक पढ़ रहा हूँ, आभार रचना पसंद आने के लिए श्वेता!
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही कहा बदलाव जरूरी है खानपान में भी और रहनसहन में भी बहुत सटीक एवं सार्थक लेख ।
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