हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
चल वीराने में बनी कब्र
कर रही तेरा इंतज़ार
वक्त को क्या देखे तु
यह तो वक्त की पुकार
ग्रहों की छम छम ताल पे
विराजे तेरा काल है
ज़िन्दगी रचे षड़यंत्र
मृत्यु का मायाजाल है
पाल पोष कर पाप की गठरी
क्यों बैठा ही तू अँधेरे में
ज़िंदा है तो जाग जरा
अपना वजूद पहचान जरा
तु कौन है और क्यों आया है
इस धरती पर तुझे क्यों बुलाया है
मौत कुछ लोग उसकी बुराई करते।
कुछ लोग अपना हमर्ददी जताते ।
आंसू लिए उसे बिदा करते ।
कुछ दिन उसे याद रखते, और
एक दिन उसे भूल जाते । जाते।
बस! मनुष्य का अंत हो जाता
फिर लोग उसे भूल जाते, और
अपने कार्य में खुद लग जाते।
मृत्यु मायाजगत में मृत्यु भी मात्र छाया है
है परन्तु छायाएं भी होती हैं दुःख का कारण...
कारण के निवारण के लिए ही तो
कनागत (श्राद्धपक्ष ) में ब्रह्माण्ड में
व्याप्त आंशिक विषाद नष्ट कर,
जीवन के नव शुभारम्भ का पूर्ण उद्घोष करने
प्रकट होती है स्वयं
जीवनीशक्ति योगमाया नवरुपों में
मृत्यु देवताओं ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे
प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीना
जिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं पर
अमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकर
और फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना
जन्म से मृत्यु का तक यात्रा
प्रारंभ मैं था छोटी सी , जान ।
फिर हुआ ,अच्छा खान-पान ।
ललकारने लगी मेरी , जुबान ।
अपनो ने सिखाया , मान-समान ।
थोड़ा औऱ समझ में आया , ज्ञान ।
शिक्षक ने मुझे सिखाया , विज्ञान ।
सादर नमन
जवाब देंहटाएंसदा की सदाबहार
चल वीराने में बनी कब्र
कर रही तेरा इंतज़ार
वक्त को क्या देखे तू
यह तो वक्त की पुकार
सादर
मृत्यु
जवाब देंहटाएंसंशय के बाहर होकर
अपनी अथाह शांति के
पवित्र आलोक में
प्रकाशित होती है।
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मृत्यु की कल्पना सदैव सुखद लगती है । मृत्यु एक ऐसा शब्द है जिसके स्पर्श मात्र से मन दार्शनिक बन जाता है।
अनूठे शब्द पर विविधापूर्ण रचनाओं को पढ़ना अच्छा लगा दी।
सुंदर संकलन
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प्रणाम दी
सादर।
मृत्य शाश्वत सत्य , फिर भी लोग स्वीकार नहीं करते । आज का विषय उम्दा चुना है । पढ़ते हुए मन अध्यात्म से जुड़ता हुआ लगा ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचनाओं का संकलन।
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