।।प्रातः वंदन ।।
अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको,
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!
उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल- मेरे पागल बादल!
~सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
मौसम की पहली बारिश और बूंदों की तहरीरों के साथ आज की पेशकश में शामिल..✍️
एक ख्वाईश....पागल मन की
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मुंबई में झमाझम बरसात, स्कूल में पानी ना भरने से शिक्षक दुखी..
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कौन सा कश्मीर हमारा है- रूह
ठीक है, एक दिन लिखूंगा...' कहकर लेखक ने रूह के कश्मीर पर लिखने के इसरार को थाम लिया है. पेज 92 पर ठीक इसी जगह मेरा सब्र टूट गया है. अब तक जो आँखों में नमी पिछले पन्नों को पढ़ते हुए साथ चल रही थी अब वह भभक कर फूट पड़ी है. घर
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कोई न्याय करे
विचारों तक उसे पहुंचाई
ये कैसी माया है !
तन तो है अपना,
मन तुझ में समाया है।
:2:
इस फ़ानी हस्ती पर
दाँव लगाए ज्यों..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
अरे वर्ष के हर्ष!
जवाब देंहटाएंबरस तू बरस-बरस रसधार!
सुंदर आगाज...
आभार..
सादर...
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी की कालजयी रचना के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छे सूत्र मिले .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ,हमारी रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिए ह्रदय से धन्यवाद ।।
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