।।प्रातः वंदन ।।
खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें।
सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें।
क़तील शिफ़ाई
हाजिर हूँ वहीं चिर परिचित अंदाज में, बहुत कुछ समेटने के प्रयास में चंद मोतिया हाथ में आई है , तो फिर आनंद लिजिए बुधवारिय अंक की...✍️
मुझे जब भी सताये याद तेरी
ले कर तस्वीर तुम्हारी हाथों में
नयनों की तृषा बुझा सुख पा लेती हूँ ।
हँसी के पर्त में दर्द छुपाकर
यादों के तराने होंठों पे सजाकर ..
एक इतालवी मित्र जो एक म्यूज़िक कन्सर्ट में गये थे, ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आता था कि इतने सारे लोग जो इतने मँहगे टिकट खरीद कर एक अच्छे कलाकार को सुनने गये थे, वहाँ जा कर उसे सुनने की बजाय स्मार्ट फ़ोन से उसके वीडियो बनाने में क्यों लग गये थे? उनके अनुसार वह ऐसे वीडियो थे जिनमें उस कन्सर्ट..
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अनमनी सी बैठी हूं,
चाहती हूं खूब खिलखिलाकर हंसना
कोशिश भी करती हूं हंसने की
पर आंखें बंद होने पर वो चेहरे दिखते हैं
जिन्हें मेरे साथ खिलखिलाना चाहिए था
अपनी राह में साथ छोड़ बहुत आगे निकल गए वे
और मैं चाहकर भी हंस नहीं पा रही..
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रात भर बरसा है
मूसलाधार पानी ।
बादलों के मन की
किसी ने न जानी ।
और इधर धरा पर
देखो दूर एक पंछी
जल प्रपात समझ
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मुश्किलों ने हमें आज़माया बहुत।
उसने रिश्तों का रक्खा नहीं कुछ भरम,
हमने अपनी तरफ़ से निभाया बहुत।
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंवाकई ! वर्षा ऋतु हरियाली और स्मृतियों की स्निग्धता की खान है । इस कोष से मोती चुन-चुन कर आपने । बधाई । मंच पर अवसर देने के लिए भी तहे- दिल से शुक्रिया । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंगुरु पूर्णिमा पर सबका अभिनंदन ।
पाँच रचनाओं में मेरी रचना भी है, यह देख कर बहुत अच्छा लगा। पम्मी सिंह त्रिप्ती जी, प्रोत्साहन देने के लिए और मेरे ब्लाग को पाँच लिंक में जगह देने के लिए दिल से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय अंक ।
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