निवेदन।


फ़ॉलोअर

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

3460...तुमने बे घर,मुझे बनाया था, कितने दिल में बने मकां मेरे...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय सतीश सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ। आज की प्रस्तुति में पद्य भाग में केवल एक रचना गद्य भाग में चार। पद्य की एक रचना ही आपको रसानंद से सराबोर कर देगी।

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

मिट के ही जायेंगे,गुमां मेरे- सतीश सक्सेना

कैसे घर से मुझे हटा पाओ, 
उसकी हर ईंट पे निशाँ मेरे!

तुमने बे घर ,मुझे बनाया था,

कितने दिल में बने मकां मेरे!

***

ज़माने के साथ (लघु कथा)

आजकल काव्या को बहुत काम रहता है। ऑनलाइन काम करती है  और घर का काम ऊपर से छोटा सा बच्चा। क्या-क्या काम करेगी वह। उन्होंने घर में झाड़ू लगाई और मन ही मन बहू की सुरुचिपूर्ण साज सज्जा की तारीफ़ की। उन्होंने हर सामान को यूँ  छुआ मानो उसे प्यार कर रही हों और उससे अपना नाता जोड़ रही हों

***

पुस्तक चर्चा 

 और कितने तीखे मोड़ (कहानी ) उपन्यास

इस उपन्यास में सामाजिक व्यवस्था में अंतर्निहित समरसता को रेखांकित करते हुए पात्रों और कथानक का ताना बाना बुना  गया है सामाजिक परिवर्तन के लिए संकल्पित और समर्पित व्यक्ति के सार्थक पहल को किन निःस्वार्थ और निष्कलुष शक्तियों का समर्थन मिलता है और किन स्वार्थी और कुटिल तत्वों से संघर्ष करना पडता है, उसका जीवंत चित्रण इसमें हुआ है | मुझे लगा कि सभी पात्र मुझे प्रेरित कर रहे हैं कि मैं उन्हें शब्दों की किरणों में नहला दूँ ताकि गुमनामी में नीँव की पत्थर की तरह पड़ी दलित महिला रोहिणी भी परिवर्तन की माशाल को लेकर सबसे आगे -. आगे कदम बढ़ाती चली जाय

***

पुस्तक-समीक्षा 

पुस्तक समीक्षा- 'चीख़ती आवाज़ें' ध्रुव सिंह 'एकलव्य'

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी अपने निबंध 'कविता क्या है?' में लिखते हैं-

"मनुष्य अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मंडल बाँधता चला आ रहा है जिसके भीतर बँधा-बँधा वह शेष सृष्टि के साथ अपने हृदय का संबंध भूला-सा रहता है। इस परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मनुष्यता खाने का डर बराबर रहता है। इसी की अंतः - प्रकृति में मनुष्यता को समय-समय पर जगाते रहने के लिए कविता मनुष्य जाति के साथ लगी चली आ रही है और चली चलेगी।"

***

श्रद्धांजलि! 

कई दशक तक गीत-ग़ज़ल के ज़रिये हमारा स्वस्थ्य मनोरंजन करते रहे भारतीय संगीत संसार के  सितारे भूपिंदर सिंह जी को हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि!

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

१९७८ में भूपिंदर की मुलाक़ात बांग्लादेश की निवासिनी मिताली मुखर्जी से हुई जो ख़ुद भी एक गायिका थीं (और हैं)। सरहदें दिलों को मिलने से भला कब रोक पाई हैं ? प्यार हुआ और फिर भूपिंदर-मिताली शादी के बंधन में भी बंधे। दोनों मिलकर गाने लगे और फिर भूपिंदर-मिताली के 'आरज़ू', 'अर्ज़ किया है', 'गुलमोहर', 'तू साथ चल', 'दर्द'-ए-दिल', 'आपस की बात', 'अक्सर', 'जज़्बात' 'मोहब्बत', 'एक आरज़ू', 'शमा जलाए रखना', 'एक हसीन शाम', 'चाँदनी रात', 'आपके नाम' और 'दिल की ज़ुबां' जैसे सुरीले एलबम लोगों के दिलों पर छा गए।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपका चयन ऐसे अन्य संकलनों से भिन्न स्वरूप रखता है। सभी रचनाएं उत्तम हैं। अभिनंदन आपका। मेरी रचना को आपने इस अंक में स्थान देने योग्य पाया, इस हेतु मैं आपका कृतज्ञ हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर रचना संकलन, रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत संकलन अनुज रविंद्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाएँ अच्छी लगीं । विशेष रूप से लघु कथा , जितेंद्र जी का लेख और सतीश जी की ग़ज़ल । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार रविंद्र जी , रचना पसंद करने के लिए !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...