अस्ताचल की ओर...
संगम दो उत्सवों का कल
एक साथ..
एक बार फिर कुआंरी पूजन
औेर कन्या भोजन..
.......
ज़िन्दगी की किताब के पन्ने.. लोकेश नदीश
गूंजने लगी हैं कान में
वो तमाम बातें
जो कभी हमने की ही नहीं
नज़र आई कुछ तस्वीरें
जो वक़्त ने खींच ली होगी
कलियों का मुस्कुराना....अज्ञात
आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की;
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना;
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम;
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना;
किंकर्तव्यविमूढ....पुरुषोत्तम सिन्हा
रच लेता हूँ मन ही मन इक छोटा सा संसार,
समय की बहती धारा में मन को बस देता हूँ उतार,
सरसराहट होती, नैया जब बहती बीच धार,
निरुत्तर भावों से मैं फिर देखता, समय का विस्तार!
बदल गये हो......अमित जैन 'मौलिक'
डबडबाती कोरों
से भी देखा,
दिखते तो हो तुम!
पर वैसे नही
जैसे दिखते थे
संभवतः तुम
बदल गये हो
हाँ!! तुम
बदल गये हो।
उलूक का पन्ना....डॉ. सुशील जोशी
टुकड़ा टुकड़ा
फटने के लिये
चाहते हुऐ भी
बट जाना
हर किसी
की सोच के
अनुसार
उसके लिये ।
आज्ञा दें यशोदा को
शुभप्रभात दी:)
जवाब देंहटाएंआज कन्यापूजन।
महानवमी तिथि।
सुंदर लिंकों का संयोजन दी।
सभी चयन साथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुंदर लिंकों का संयोजन!!!.....नमस्तस्यै, नमस्तस्यै ,नमो नमः!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात। महानवमी की शुभकामनाएं। सुंदर है 805 वा अंक। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत संकलन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सभी रचनायें अप्रतिम। सबरंगी अंक। मेरी रचना को स्थान देने के अतुल्य आभार। सभी रचनाकारों को बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनाओं संग ढ़ेरों आशीष
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी। आभार 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर पठनीय लिंक संयोजन बेहतरीन प्रस्तुति करण....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुंदर लिकों का चयन..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
धन्यवाद