आदरणीय दीदी नहीं न दिखाई दी..
नहीं लिख सकता मैं भूमिका अच्छी
पाँच लिंकों का आनन्द में ही बहल जाता है.
"जीवन कलश"......छाए हैं दृग पर
वो झुक रहा वारिधर,
यूँ आकुल हो प्रेमवश नीरनिधि पर,
ज्यूँ चूम रहा जलधर को प्रेमरत व्याकुल महीधर।
मन के पांखी.....तुम ही तुम
है गुम न जाने इस दिल को हुआ क्या है
सुकूं मिलता नहीं अब मंदिर शिवालों में
तेरे एहसास में कशिश ही कुछ ऐसी है
भरम टूट नहीं पाता हक़ीक़त के छालों में
मेरी भावनाएँ....एक प्रतिमा मैंनें भी गढ़ना शुरु किया
स्तब्ध हूँ
या .... विमुख हूँ
कि क्या हो रहा है !
या यह तो होना ही था !
वे तमाम लोग
जिनकी अपनी शाख थी
भूल गए हैं दिनकर की पंक्तियाँ
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो ....
विविधा पर....मिट न सकी
मेरे अभ्यंतर से
बार बार पुनः
जन्म हुआ
चाहिये मुझको
भरपाई
तृप्त भरपाई
उलूक टाईम्स की ताजा कतरन
कोई भाव
नहीं देता है
सब ही कह देते हैं
दूर से ही नमस्कार
....
जमाने की नब्ज में
बैठ कर जिस दिन
शुरु करता है तू
शब्दों के
साथ व्यभिचार
....
मांगता है इज़ाज़त
दिग्विजय
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंरात11.25 तक हम दोनों ने मिल कर से प्रस्तुति बनाई
तब तक आदरणीय दीदी की प्रस्तुति दिखाई नहीं पड़ रही थी
तो इस अंक को बनाया गया..
रात 1.30 मिनट पर विभा दीदी को याद आया
वे उठकर अपनी प्रस्तुति बनाकर फिर सो गई....
कुल मिलाकर आज हमारे सुधि पाठकों को ग्यारह रचनाओं
का आनन्द मिलेगा
सादर
आपकी चिंता समझती हूँ और हुई परेशानियों के लिए क्षमा
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
जवाब देंहटाएंआप दोनों के ऐसे समर्पण ने ही ब्लॉगिंग की दुनिया में "पाँच लिंकों का आनंद" को शिखर पर पहुँचाया है। हमारा सादर नमन स्वीकार कीजिये।
आदरणीय भाई जी का लिखा बहुत सीमित पढ़ने को मिलता है। उन्हें विस्तार देना चाहिए क्योंकि वे जितना भी लिख देते हैं उसमें ग़ज़ब का हास्यबोध है।
बहुत सुन्दर चयन सरस सूत्रों का।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आभार सादर।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसराहनीय
आभार
उषा स्वस्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया उलझन जिससे पाठकों को और रचनाएँ मिली।
आभार।
बहुत ही सुंदर संकलन। मेरी रचना को मान देने के लिये अतुल्य आभार।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है दो दो प्रस्तुति एक साथ एक ही दिन वो भी एक से बढ़कर एक। आभार 'उलूक' का भी सूत्र चयन कर सम्मानित करने के लिये।
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