नवरात्रि-पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐं।
आदरणीया शबनम शर्मा जी की विचारणीय रचना में -
मंगलसूत्र [कविता]........... शबनम शर्मा
काष कि उस दिन पहनाया होता
किसी ने बाहों का मंगलसूत्र
जो मुझे हर वक्त देता इक सकून
इस घर को अपना कहने के लिये।
आदरणीय प्रोफ़ेसर सुशील कुमार जोशी द्वारा रचित -
इतना दिखा कर उसको ना पकाया करो कभी खुद को भी अपने साथ लाया करो........ सुशील कुमार जोशी
आप की बातें भी
अपने आईने में
चिपकी तस्वीर
किसी दिन
हटाया करो
मैं तो इसे मुक्तिबोध की रचनात्मकता की जीत ही मानता हूँ. क्योंकि वे ऐसे रचनाकार हैं जो अपने पाठकों - जिनमें उनके मुरीद और विरोधी दोनों ही शामिल हैं - को चुनौती देते हैं. कारण यह है कि मनुष्य का जो सभ्यतागत स्वभाव होता है, श्रेष्ठता का प्रदर्शन और निम्नता का गोपन, मुक्तिबोध उसे नहीं मानते.
वे अपनी हर साँस को दर्ज करने को व्याकुल रहते थे. याद करो कला के तीन क्षण की संकल्पना. क्या उनके अलावा कोई दूसरा तुम्हें दिखाई पड़ता है जो पहले क्षण के हर अनुभूत सत्य को जिद के साथ, निर्ममता के साथ, डाँट-डपट कर या जबर्दस्ती तीसरे क्षण के पाले में घसीट कर ले जाने की कोशिश करे? मुझे तो नहीं दिखता. तुम्हें दिखे तो बताना. इसलिए शुरू में ही मैंने कहा कि मुझे मुक्तिबोध बेचैन करते हैं.
एक कलश मस्ती का जैसे...... अनीता जी
सांध्य दैनिक "विविधा" पर आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी द्वारा प्रस्तुत शायर राज़िक़ अंसारी जी की एक शानदार कृति -
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंटूट गयी जब नींद हृदय की
गाठें खुल-खुल कर बिखरी हैं,
एक अजाने सुर को भर कर
चहूँ दिशाएं भी निखरी हैं !
श्रेष्ठ चयन
आभार
सादर....
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्र जी,
800वें अंक की प्रतीक्षा है।
सुंदर रचनाओं का संकलन आज के अंक में,प्रभावी प्रस्तुति करण।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।
साधू साधू , बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया संकलन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद।
उम्दा लिंक संकलन... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण.....
जवाब देंहटाएंनवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं....
चर्चा में नये आयाम छूती पाँच लिंकों की हलचल के आज के अंक के शीर्षक पर 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये आभार रवींद्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशारदीय नवरात्र की बधाई और शुभकामनाएं ! पठनीय सूत्रों से सजी हलचल, आभार !
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