अथ श्री दुर्गा महासप्तमी
तुम्हीं स्वाहा, स्वाधा और वष्टाकार हो
स्वर भी तुम्हारे ही रुप में निहित है
नित्य अक्षर प्रणव में आकार, उकार और मकार
आप सबकी आमद के इन रचनाओं को
हर शहर का आजकल मौसम बदला है
रवायत और ज़दीदियत का संगम है
पर...खूब खरा रंग निखरा ...✍
आईये आज इसी माहौल की शुरुआत करते है.
बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा,
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा।
हो जाएगें आकाश के कोर सुनहरे लाल,
परिंदों की ख़ामोशी शाम का इशारा रहेगा।
"और वे जी उठे" !
मैं 'निराला' नहीं
प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ
'दुष्यंत' की लेखनी का
गुरूर ज़रूर हूँ
'मुंशी' जी गायेंगे मेरे शब्दों में
कुछ दर्द सुनायेंगे
ट्रोल-नाके से गुज़रने का अनुभव !
सोशल मीडिया पर टहल रहा था।अचानक कई जगह अलग-अलग वैरायटी की गालियाँ दिखाई दीं।
आज जो जोगन गीत वो गाऊं.
अधरों के सम्पुट क्या खोलूं ,
मूक कंठों से अब क्या बोलूं.
भावों की उच्छल जलधि में,
आंसू से दृग पट तो धो लूँ .
किस्सा दर्द का है फिर भी सुनाता हूं इसे गुनगुना कर ।
वो रूठ कर खुश हो ले, मैं भी खुश होता हूँ उसे मनाकर ।
एक रात के मुसाफिर से तू इजहार-ए-मोहब्बत न कर ,
सुबह होते ही चला जाऊंगा मैं तो तुझे रुलाकर ।
समय के साथ हम सभी रचनाकार और बढेंगे समीक्षा होनी ही चाहिए..💭✍
।। इति शम।।
आभार
पम्मी सिंह
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन प्रकृति करती है
अपने आप में...तदानुसार
विचार भी बदलते रहते है
मानव मन में...
ठीक इसी प्रकार
दिन-प्रतिदिन
आ रहा है निखार..
हमारे इस ब्लॉग में स्वतः ही
एक बेहतरीन प्रस्तुति
आभार
सादर
ऊषा स्वास्ति पम्मी जी,
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन ही तो है जो जीवन को गति प्रदान करती है।
बदलाव वक्त के अनुसार स्वाभाविक प्रक्रिया है। बस माता रानी से इतनी दुआ हर शहर के मौसम में बदलाव सकारात्मक हो।
आपके अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत आज का अंक बहुत सुंदर है जी।सारी रचनाएँ बहुत ही सराहनीय है।
मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से आभार आपका। सभी साथी चयनित रचनाकारों को भी बधाई
एवं शुभकामनाएँ।
बदलता है
जवाब देंहटाएंमौसम भी
मन भी
प्रकृति भी
और हम भी
कभी तो
तुरन्त...
और कभी
लग जाते है सालों
बदलने में..
निहारें..
मेरी ओर भी
कभी....
बेहतरीन प्रस्तुति
आदर सहित
नवरात्रि की सप्तमी तिथि आप सभी के लिए शुभ हो..बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई पम्मी जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन पम्मी जी ,परिवर्तन ही प्रग्रति का सूचक है ,माँ दुर्गा के नवरात्रों में सबका जीवन पावन हो और उन्नति की नयी ऊँचाइयाँ छुए
जवाब देंहटाएंकल बीत जाना, फिर कल आना,
जवाब देंहटाएंसृष्टि का ये चलन पुराना.
तपना, भींगना और ठिठुरना,
मौसम का ये ताना बाना.
जीवन चक्र ऐसे ही चलता,
उद्भव, पलना और गुजरना.
हिम तरल बन वाष्प में परिणत,
फिर तुषार का वापस पड़ना.
जगत मिथ्या ब्रह्म्-सत्यम दर्शन,
चिन्मय चिंतन चिरंतन चरना.
नैसर्गिक पावन उपवन में,
विश्वमोहिनी, हरदम हंसना.........कालरात्री शुभंकरी की पावन सप्तमी के इस सुभग संकलन का साधुवाद एवं शुभकामनाएं!
पम्मी जी द्वारा प्रस्तुत सुन्दर पांच लिंकों का आनन्द एवं इस चर्चा में सम्मलित सभी सारगर्भित रचनाओं के रचनाकार को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंनमस्ते ,
जवाब देंहटाएंवाह !
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी की।
नवरात्र -उत्सव के बीच तरोताज़ा करते वैचारिक सूत्र।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आभार सादर।
बहुत ही सुंदर....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमाँ की कृपा सब पर बनी रहे
जवाब देंहटाएंखूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अंक। सारी रचनायें एक से बढ़कर एक। पम्मी जी को आभार शुभेक्षायें
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द विन्यास से प्रतिक्रिया के लिये आप सभी को नमन करते हुए आभार प्रकट करती हूँ..
आदरणीया पम्मी जी प्रणाम आज का संकलन विशेष है विचारों से ओत-प्रोत सुन्दर रचनाओं से सजी आज की प्रस्तुति हृदय से आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुतिकरण.....उम्दा लिंक्स...
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक।
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