शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की चुनिंदा रचनाएँ-
जब भी कभी याद आ जाये लिखने की कुछ लिखें कहीं
सोच में में अपनी मगरूर था,
ना जाने किस बात का गुरूर था ।
मगर तू तो मुझमें बसा रहा,
पर मुझे ना कोई इल्म ना सुबुर रहा।।
रब मेरे, मेरे जीवन के खेवन
तेरा बचपन, तेरा यौवन
तेरा हर पल, तेरी खुशियां
हंसते हंसते लेंगे ये गम।
यह धरती यह नीला अंबर
प्राणवान है तुमसे ईश्वर
तुम अपना आवास बनाते
दीन-दुखी प्राणी के अंदर।
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खरी-खरी..
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
आभार
सादर...
आभार रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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