।।प्रातःवंदन।।
दुनिया अब बाजार में बदल गई है
दोस्त अब आत्महत्याओ में बदल गई है
मंच अब मंडियो में बदल गई है
कविताए अब पंक्तियो में बदल ...
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ऐसी ही तो होती है पीड़ा
जैसे जम गया हो भीतर
उदासी का एक पर्वत
अवरोधित हो गयी हो
अविरल धारा
आसमान भी रो रहा था,
धरती पानी- पानी थी।
काली बाड़ी खप्परधारी,
चुप्पी ये बेमानी थी।..
✨️
स्त्रियाँ चखी जाती हैं
किसी व्यंजन की तरह
उन्हें उछाला जाता है
हवा में किसी सिक्के की तरह
उन्हें परखा जाता है
किसी वस्तु की तरह ..
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और उस पर क़र्ज़ साहूकार का।
मान लो हज़रत ! तवाज़ुन के बिना,
है नहीं कुछ फ़ाइदा रफ़्तार का।
आजकल देता हो जो सच्ची ख़बर,
नाम बतलाएँ किसी अख़बार का।
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
स्त्रियाँ चखी जाती हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार
सुंदर सूत्रों का संकलन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ ! सार्थक भूमिका और पठनीय रचनाओं का संयोजन, आभार पम्मी जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
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