आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
मानती हूँ मैं,
असंतुलन सृष्टि का
शाश्वत सत्य है,
सुख-दुख,रात-दिन,
जीवन-मृत्यु की तरह ही
कुछ भी संतुलित नहीं
परंतु विषमता की मात्राओं को
मैं समझना चाहती हूँ,
क्यों नकारात्मक वृत्तियाँ
सकारात्मकता पर
हावी रहती हैं?
क्यूँ सद्गुणों का तराजू
चंद मजबूरियों के सिक्कों के
भार से झुक जाता है?
सोचती हूँ,
बदलाव तो प्रकृति का
शाश्वत नियम है,
अगर वृत्तियों और प्रवृत्तियों
की मात्राओं के माप में
अच्छाई का प्रतिशत
बुराई से ज्यादा हो जाये
तो इस बदले असंतुलन से
सृष्टि का क्या बिगड़ जायेगा?
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जला चुके साल-दर-साल, बारम्बार, मुहल्ले-मैदानों में, पुतलों को रावण के, था वो व्यभिचारी।
पर है अब, बारी-बारी से, निर्मम बलात्कारियों व नृशंस हत्यारों को, जबरन ज़िंदा जलाने की बारी।
वर्ना, होंगी आज नहीं तो कल, सुर्ख़ियों में ख़बरों की, माँ, बहन, बेटी या बीवी, हमारी या तुम्हारी।
चीर हरण के रक्षक जब खुद ही चीर उड़ाते हैं
ऐसे ही किसी देवी का शायद त्यौहार नहीं होगा
बेटी! तुम खुद ही शस्त्र संभालो,
इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा
इस कलयुग मे कृष्ण का अवतार नहीं होगा ||
जब वे पैडल मारते हुए निकलती हैं,
बहुत बहादुर लगती हैं,
जब दोनों हाथों से हैंडल थामती हैं,
तो लगता है, यक़ीन है उन्हें ख़ुद पर.
सीट पर बैठी लड़कियाँ जानती हैं
हर हाल में संतुलन बनाए रखना,
छोटे-मोटे पत्थरों की परवाह नहीं करतीं
साइकिल चलानेवाली लड़कियाँ।
"सपना ही समझ लो पर उसे सच तो तुम्हें अपनी मेहनत और होशियारी से करना है।"
जवाब देंहटाएंझब्बू खुशी से उछल पड़ा। "मैडम जी मैडम जी आप तो देवी हैं। मैं यह खुशखबरी अपनी माँ को सुना आऊँ।" वह बच्चे की तरह दौड़ता आँखों से ओझल हो गया।
बांस के कारीगर
बेहतरीन अंक
आभार
वंदन
जी ! सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को उस मंच की अपनी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह, आपकी आज की भूमिका भी विचारणीय है, पर .. वैसे तो .. धरती पर प्रकृति ने अच्छाईयों के प्रतिशत अधिक बनाएं हैं, बुराईयों के बनिस्बत .. तभी इस ब्रह्माण्ड में हमारी धरती टिकी हुई है .. शायद ...
(आपने "छड यार !" को छड़ यार कर दिया है 😢)
जी,क्षमा चाहते हैं।
हटाएंबहुत सुन्दर अंक.आभार
जवाब देंहटाएंआज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार महोदया 🙏 बांकी सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई 💐
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसारी रचनाएँ बेहतरीन है।
जवाब देंहटाएंमैं ''कलयुग में कृष्ण न आयेंगे'' रचना से प्रभावित हुआ।
एक सलाह है : सभी रचनाकारों से अनुरोध है कि अच्छी रचनाओं को अपने परिचितों के बीच जरूर साझा करें। जिससे हमारे ब्लॉग तक अधिक-से-अधिक पाठक पहुँचेंगे।
प्रिय श्वेता, स्त्री विमर्श पर बेहतर रचनाओं के साथ झझकोरती भूमिका अत्यंत प्रभावी है! प्रकृति को भी अपनी तरह असंतुलित कर दिया मानव ने! सभी रचनाओं का सार है स्त्री आत्म रक्षा में पारंगत हो यही एक संकल्प उसकी दयनीय दशा को संभाल सकता है! सुबोध जी की रचना का वीडियो भी प्रभावी था। आभार सुंदर प्रस्तुति के लिए। सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक किन्तु दुखद परिस्थितियों पर श्रेष्ठ संकलन।
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