शीर्षक पंक्ति: आदरणीया सुधा देवराणी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
‘मौन की आवाज़’ कोरोना पर मेरी कविताओं का तीसरा संकलन है. पहला संकलन ‘जमी हुई ख़ामोशी’ और दूसरा ‘पत्तों पर अटकी बूँदें’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है. आशा है कि इन दो संकलनों की तरह यह संकलन भी आपको अच्छा लगेगा. इसे 49 रुपए में ख़रीदा जा सकता है।
घिरी घटा गहराये बादल,
भर भर के जल लाये बादल,
तीव्र ताप से तपी धरा पर,
मधुर सुधा बरसाये बादल।
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मीठे में
कविता- जिक्रे यार चले
'ये जिस गुलमोहर के नीचे हम बैठे हैं न, उसके जन्मदिन पर मैंने उसे तोहफे में दिया था और हम दोनों ने इसे यहाँ रोपा था। मैं जानती हूँ वह भी कभी इस शहर में आता होगा तो कुछ पल इसके नीचे जरूर बैठता होगा...'अब कहो कि स्मृतियाँ सांस नहीं लेतीं...
प्रिय पल्लवी, ये लिखते मेरे
रोएँ खड़े हैं और आँखें नम हैं कि तुमने ये सुंदर किस्से हमें दिये। आओ न गले लग
जाते हैं, चाय तो श्रुति
ही बनाएगी...है न?
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बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
सुंदर अंक। मेरी पुस्तक के बारे में सूचना शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं के साथ लाजवाब प्रस्तुति। मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
बहुत सुंदर अंक 🙏
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