जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है।
नून-रोटी के जुगाड के ज़द्दोज़हद में अनगिनत पल ऐसे आते हैं जब निराशा एक अंधेरी गुफा की तरह मन पर छा जाती है।
कोई राह नहीं सूझता,अंधेरे में अनजान मुसीबतों ,ठोकरों और शत्रुओं के प्रति आशंकित मन फिर भी
घुप्प अंधेरी गुफा का छोर ढूँढ़ना नहीं छोड़ता है
और तब तक टटोलता रहता है जब तक का उजाले की किरण उस कालिमा को मिटा न दे।
उजाला जीवन की सकारात्मकता,आशा,खुशियाँ और प्रगति का प्रतीक होता है।
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तम की चादर से ढाँप लिया
सुख खिलता सदा उजालों में,
परिवर्तन भी आया केवल
चाय के कप के उबालों में !
जिनको खाकर तन कुम्हलाया
हर राज था उन्हीं निवालों में,
जो विस्मय से भर सकता मन
उलझाया उसे सवालों में !
एक किवदंती के अनुसार तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने सिलाव को खाजा (दूकान में खाजा सुनते ही जी भर खा जाओ-खाते जाओ बिना रोकड़ा दिए) नगरी के रूप में विकसित किया था। इस स्थल पर ही भगवान बुद्ध, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन और प्राचार्य शीलभद्र की प्रथम भेंट हुई थी। उस समय शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा खिलाकर किया था। तब भगवान बुद्ध ने पुछा था यह क्या है ? इसके जबाव में शीलभद्र ने कहा था कि खा-जा भगवान बुद्ध ने खाने के बाद काफी प्रशंसा की। उसी समय से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया।
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स्तरीय रचनाओं से सजा आज का ये अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर वंदन
बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ ! सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक.आभार.
जवाब देंहटाएंशानदार अंक!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकैसी अनीतियों का युग
जवाब देंहटाएंचहुँ ओर अनिष्ट-विचारी...
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सादर अभिनंदन आ० श्वेता जी। आपकी प्रतिभा तथा सहयोग के सहारे पुनः ब्लॉग की दुनिया से जुड़ गया हूँ।
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एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ रचनाओं के इस संकलन के लिए आपको तथा सभी साथी रचनाकारों को हृदयतल से बधाइयाँ एवं भावी भविष्य के लिए मंगलकामनाएँ🙏🏻🙏🏻