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गुरुवार, 13 जून 2024

4155...ये मेरे कुल की रीति नहीं...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय  अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

विप्र सुदामा - 46

पाहुन छोड़ महल आऊँ,

यह कहती है नीति नहीं।

बचपन का  भी प्रेम नसै,

ये मेरे कुल की रीति नहीं।।

*****

776. कशमकश

फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है 
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
*****

मनोभ्रंश--

उम्र

के अंतिम पड़ाव

पर रुक जाते

हैं शब्दों के

जुलुस

बस यही तो है उल्टी गिनती वाला मनोभ्रंश,

*****

कुंदलता सवैया छंद

चल रे मन तू हरि को सुमिरै,इस जीवन का बस लक्ष्य यही रख।

वह पालक भी वह तारक भी,बस जीवन में रस देख यही चख।

सब नश्वर है बस सत्य वही,नित वंदन पूजन मूरत को लख।

मनमीत बना उर में रख ले,यह भाव बना तब वे बनते सख।

*****

सिक्किम दार्जिलिंग यात्रा...

गंगटोक में सीजन में भीड़ बहुत होती है, इसलिए ट्रैफिक भी बहुत होता है। सारा ट्रैफिक छोटी छोटी संकरी गलियों से होकर ही गुजरता है। लेकिन कुछ प्रशासन का प्रबंधन, कुछ लोगों का अनुशासन, दोनों मिलकर ट्रैफिक को आसानी से मैनेज कर लेते हैं। *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


6 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों की कशमकश
    शानदार अंक
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सादर

    जवाब देंहटाएं

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