सादर अभिवादन
कुछ हुआ ही नहीं
तो फिर क्यों सोचें
जब होगा तो सोचा जाएगा
कुछ रचनाएं
वो जो खिड़की है न
फ्रेम है तुम्हारी सुबहों का
बाहर से भीतर झांकती
रोशनी तुम्हारे कदमों को
चूमती हुई तुम्हारी आंखों
में चमक कर खुलती है
खलीफा ने कहा, "परन्तु वहां मृत्यु के बाद, कयामत के दिन ये कंकर मैं साथ लेकर कैसे जाऊंगा?"
गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा - अपने इतने माल-खजाने ले जाओगे सोना, चांदी, हीरे,
जवाहरात तो थोड़े से कंकर नहीं ले जा सकते क्या?
खलीफा की आंखें खुल गई। उसने कहा ये सब कुछ तो साथ नहीं जाएगा। कभी किसी के साथ नहीं गया।
गुरुजी बोले - तो फिर ये सब एकत्र क्यों करते हो? बांट दो उन लोगों को जिन्हें इसकी आवश्यकता हो।
किसी को भी किसी के आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने का कोई अधिकार नहीं है
क्योंकि कई बार इन थप्पड़ों की गूँज नहीं हो पाती है और
वह डाह बनकर गलाते हैं किसी के मन को. इंसान अवसाद में
आकर आत्महत्या तक की ओर क़दम उठा लेता है.
थप्पड़ बस एक थप्पड़ नहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से समीकरण होता है
व्यवहारिक दृष्टिकोण से सम्मान और अपमान होता है और नैतिक दृष्टिकोण से?
इसके बारे में सोचा है कभी?
बाहर खडे कवि ने सुना तो रोने लगा और मंत्री के सामने आकर पैर पकड़ लिए.
आज के बाद मैं सिर्फ वही करूँगा जो मुझे अपनी कला को निखारने के लिए आवश्यक है
और ईश्वर की महिमा गाऊंगा. आपने बड़े अपराध से मुझे बचा लिया.
आज बस
कल फिर
सादर वंदन
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