शीर्षक पंक्ति:प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक आज प्रस्तुत हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
इक़बाल हुसेन ! तुम एम० एफ़० हुसेन जैसे किसी पेंटर के रेट पर बाल डाई करते हो क्या?’
इक़बाल हुसेन के पास तो ऑफ़र्स का पुलिंदा था. इस बार उन्होंने एक और दिलकश ऑफ़र दिया –
‘अंकल जी, चम्पी तेलमालिश करवा लीजिए. आपको वो गाना तो याद ही होगा –
सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए - - -
जॉनी वॉकर से अच्छी चम्पी तेल मालिश न करूं तो आप एक पैसा भी मत दीजिएगा.’
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कभी बोलकर
कभी चुप रहकर
कभी कह कर
कभी न कहकर
कभी छुप कर
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मरुस्थल में पौधा सींचने
दौड़ती हुई आती हैं
कहती हैं-
“तुम्हारे घर के बंद किवाड़ देखकर भान होता है
अस्त होता सूरज नहीं! हम तुम्हें डंकती हैं!!”
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदे
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।
सुंदर अंक
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