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शुक्रवार, 14 जून 2024

4156...कैसी अनीतियों का युग

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है।
नून-रोटी के जुगाड के ज़द्दोज़हद में अनगिनत पल ऐसे आते हैं जब निराशा एक अंधेरी गुफा की तरह मन पर छा जाती है।
कोई राह नहीं सूझता,अंधेरे में अनजान मुसीबतों ,ठोकरों और शत्रुओं के प्रति आशंकित मन फिर भी
घुप्प अंधेरी गुफा का छोर ढूँढ़ना नहीं छोड़ता है
और तब तक टटोलता रहता है जब तक का उजाले की किरण उस कालिमा को मिटा न दे।
उजाला जीवन की सकारात्मकता,आशा,खुशियाँ और 
प्रगति का प्रतीक होता है।

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भोर पलक छूकर मुस्कुराई/ किरणें चमकीली रसधार।
मंत्र खुशी का सुन लो तुम भी/ पाखी गाये जीवन सार।
पैर पटकती जल पर किरणें/  दरिया से करती है प्यार।
धरा की धानी चुनरी विहंसी/ अंगड़ाती पुरवाई बयार।
ऋतु की पाती आती -जाती/ समय न ठहरे झरे बहार।निशा करतल से फिसला चाँद/ डूबा सागर जागा संसार।
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आज की रचनाएँ
आपके साथी चिट्ठाकार प्रतिभाशाली रचनाकार
 अमित निश्छल जी का ब्लॉग मकरंद 
डिलीट हो गया है,उन्होंने नया ब्लॉग
बनाया है। 

शिव! शशि को धारण करके


मतभेद समय का सत्वर
हम हैं निरीह से प्राणी,
अमरत्व अमिय का देकर
कर देना पावन वाणी।
कैसी अनीतियों का युग, चहुँ ओर अनिष्ट-विचारी
है पतित हुई मानवता, डमरू की ध्वनि कर देना।

शिव! शशि को धारण करके...


यादों से

यादों,
किस हक़ से रोकती हो मुझे,
तुम्हारा रिश्ता तो घटनाओं से है, 
घटनाओं ने तो एक बार ही तड़पाया,
तुम तो बार-बार तड़पाती हो मुझे. 


सौदाई को माने रखते हैं


कीमत फूल की बढ़ जाए है जब ।
जुल्फों में वो दिखाने रखते है ।।

लब आंखें जुल्फें कितने आखिर ।
सुंदर लोग ख़ज़ाने रखते है ।।


सुख खिलता सदा उजालों में

तम की चादर से ढाँप लिया 

सुख खिलता सदा उजालों में, 

परिवर्तन भी आया केवल 

चाय के कप के उबालों में !


जिनको खाकर तन कुम्हलाया 

हर राज था उन्हीं निवालों में, 

जो विस्मय से भर सकता मन 

उलझाया उसे सवालों में !


खाजा-दूरदर्शिता


एक किवदंती के अनुसार तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने सिलाव को खाजा (दूकान में खाजा सुनते ही जी भर खा जाओ-खाते जाओ बिना रोकड़ा दिए) नगरी के रूप में विकसित किया था। इस स्थल पर ही भगवान बुद्ध, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन और प्राचार्य शीलभद्र की प्रथम भेंट हुई थी। उस समय शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा खिलाकर किया था। तब भगवान बुद्ध ने पुछा था यह क्या है ? इसके जबाव में शीलभद्र ने कहा था कि खा-जा भगवान बुद्ध ने खाने के बाद काफी प्रशंसा की। उसी समय से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. स्तरीय रचनाओं से सजा आज का ये अंक
    आभार..
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभकामनाएँ ! सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर अंक.आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर अंक

    जवाब देंहटाएं
  5. कैसी अनीतियों का युग
    चहुँ ओर अनिष्ट-विचारी...

    सादर अभिनंदन आ० श्वेता जी। आपकी प्रतिभा तथा सहयोग के सहारे पुनः ब्लॉग की दुनिया से जुड़ गया हूँ।

    एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ रचनाओं के इस संकलन के लिए आपको तथा सभी साथी रचनाकारों को हृदयतल से बधाइयाँ एवं भावी भविष्य के लिए मंगलकामनाएँ🙏🏻🙏🏻

    जवाब देंहटाएं

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