सृजन में
स्वच्छंदतावाद
की हुई भरमार,
वाद-पंथ पर होती
बार-बार तकरार।
-रवीन्द्र
कितना बेसब्र है , भागा भागा जाता है।
दिलों पर हुकूमत तलाशता है,
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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मेरी रचना को शामिल करने के लिये आपका बहुत- बहुत आभार,धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंआपकी निष्पक्ष चयन शक्ति को नमन।
व्वाहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
सादर...
सुंदर सराहनीय अंक
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंवाह! रविन्द्र जी ,शानदार प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंस्वच्छंदतावाद तो बिना ब्रेक की और बिना स्टीयरिंग की गतिशील गाड़ी जैसा होता है. इसका उपयोग सृजन के लिए नहीं, बल्कि केवल विध्वंस के लिए ही हो सकता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्रों के बीच मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका सादर शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति में मेरी रचना को आपने स्थान दिया इसके लिए बहुत-बहुत आभार आपका। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएँ. मुझे स्थान देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया सर
सादर
अत्यंत संतुलित , सार्थक प्रस्तुती आदरणीय रवीन्द्र भाई | भूमिका में लिखी चार पंक्तियाँ अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंके अधिकार की विद्रूपता को जाहिर करती हैं | आजकल किसी के बारे में सांकेतिक भाषा इस्तेमाल करना एक चलन सा बन गया है | रचनाकार ये नहीं सोचते कि किसी के सम्मान को ठेस पंहुचा कर वे अपना सम्मान उससे कहीं अधिक घटा लेते हैं भले उनकी लेखनी कितनी भी प्रखर क्यों ना हो | सो सम्मान करें सम्मान पायें , यही विद्वानों का आभूषण हैं | वाचालता एक विकार है फेसबुक पर तो स्थिति बहुत शोचनीय है | सुंदर अंक के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
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