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रविवार, 24 नवंबर 2019

1591....क्‍या वो दिन भी दिन हैं जिनमें दिन भर जी घबराए ।।


जय मां हाटेशवरी.....
कल सोने से पहले पड़ा कि.....
महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे  होंगे....
पर जब सुबह सोके उठा तो.....
मुख्य खबरों में था.....
आज फडणवीस जी की मुख्य मंत्री के रूप में   शपत.....
जिस को अब भी हो सियासत पे यक़ीन
उस को ये मुल्क दिखाया जाए

स्वागत है आप सभी का.....
पेश है आज के लिये मेरी पसंद....
राही मासूम रजा जी की इन पंखतियों के साथ.....

क्‍या वो दिन भी दिन हैं जिनमें दिन भर जी घबराए ।।
क्‍या वो रातें भी रातें हैं जिनमें नींद ना आए।
हम भी कैसे दीवाने हैं किन लोगों में बैठे हैं
जान पे खेलके जब सच बोलें तब झूठे कहलाए।
इतने शोर में दिल से बातें करना है नामुमकिन
जाने क्‍या बातें करते हैं आपस में हमसाए।।
हम भी हैं बनवास में लेकिन राम नहीं हैं राही
आए अब समझाकर हमको कोई घर ले जाए ।।
क्‍या वो दिन भी दिन हैं जिनमें दिन भर जी घबराए ।।


विस्थापित होते शब्द
दोस्त को अब 'फ्रैंड्' कहते
प्रेमी 'बॉयफ़्रेंड' हो गया। 
दिल टूटना 'ब्रेकअप' हुआ
क्षमा का 'सॉरी' हो गया
शादी को 'मैरिज' कहते
प्यार का 'लव' हो गया।



इस जीवन पथ पर....
चलेंगे साथ मिलकर,
सुख दुःख मे पकड़े एक दूसरे का हाथ|
एक दूसरे को सहारा दे,
खुशी खुशी चले साथ मिलकर|
इस जीवन पथ पर.....

पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी क्यों और कैसे बनता हैं?
हर इंसान अपनी समस्याओं से जल्द से जल्द मुक्ति पाना चाहता हैं। इसलिए लोग इन विज्ञापनों के जाल में फंस जाते हैं। जो पढ़ा-लिखा इंसान पढ़ी हुई बातों पर चिंतन-मनन
करता हैं, वो इंसान अंधविश्वास के मकडजाल से निकल जाता हैं। लेकिन जो इंसान ऐसा नहीं करता वो हाथी की तरह हो जाता हैं। मतलब जिस तरह एक विशालकाय हाथी को उसके
बचपन में मजबूत जंजीरों से बांध कर उसे इस बात का एहसास करवाया जाता हैं कि वो इन जंजीरों को नहीं तोड़ सकता। बचपन के इसी एहसास के कारण एक वयस्क विशालकाय हाथी
ताउम्र एक पतली सी जंजीर से बंधा रहता हैं!!
इस तरह बचपन से हुई अपनी परवरिश के कारण ही पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी बन जाता हैं। दोस्तो, हम हर विषय की दो-दो परिभाषा रखते हैं इसलिए दुविधाग्रस्त हो
जाते हैं। कुछ लोगों का कहना होता हैं कि हमारे पुर्वज ऐसा मानते थे इसलिए हम भी मानेंगे। हमारे पुर्वज कंद-मुल खाकर जंगलों में नग्न रहते थे, तो क्या हम भी

टुकड़ा टुकड़ा आसमान
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?

संस्कार संक्रमण
अपने आँगन के पौधों को
क्यों काँटों से हम तोप रहे?
मुस्तफ़ा खाँ 'मद्दाम' का
समृद्ध उर्दू-हिंदी शब्दकोश
क्यों न हम रोक सके थे...?
'बुल्के' का रामकथा पर शोध
भाषा कल-कल बहता नीर
सरहदों में बाँध क्यों रोक रहे?
मत बनाओ नस्लों को
साम्प्रदायिकता का शिकार
संकीर्ण मनोवृत्तियों से पनपी
'कूपमंडूकता' है एक विकार

बेटी के माँ बाप
तुम्हारे मम्मी पापा का क्या हाल है, बहु? मिलने गयी ?
बहुत अच्छे  से हैं।  मिलने नहीं जा सकी।  काफी महीने हो गए मिले, फोन पर बात हो जाती हैं।
हाँ -हाँ , ठीक भी है , अपनी गृहस्थी  सम्भालो , नौकरी करो।
मैंने इक मुस्कान के साथ सर हिलाया।
ह्म्म्मम्म और इक बार फिर से वही शब्द '''''''''''''''''''''''''
''तुम नहीं समझोगी माँ बाप का दुःख, बहु। हम बूढ़े  यहां अकेले।  हमने सारी  ज़िंदगी बेटों पर ही लगा दी।  सारा जीवन बस इनके लिए सेक्रेफाइज़ करते रहे।
इक मुस्कराहट के साथ इक बार फिर से पैरी पैना कर के कार में बैठ  गयी।
कार सरपट सड़कों पे दौड़े जा रही थी और साथ ही दौड़ने लगी मेरी सोच भी।  अब खुद से ही संवाद करने की आदत पढ़ सी गयी है।

हत्या
सभी भूर्ण लड़कियों के नहीं है,बहुत से लड़के भी थे।  लड़के ! ये  क्या कहा रहे हो तुम?   कोई अपने लड़के को  क्यूँ मरना चाहेगा ?  लड़की है  या लड़का उन्हें क्या
पता था।
उन्हें  बस एबोर्सन से  मतलब था और हमें पैसे से।  दोनों के बीच खामोशी छा गई।

अंतिम विकल्प या दूसरा अध्याय 
 जो जीवित दिखाई दे रहे,
वे क्या सचमुच जीवित है
जिनके आगे हम राम नाम की सत्यता का जाप करते हैं
वे क्या सचमुच मूक बधिर हो चुके हैं ?
सत्य की प्रतिध्वनि मिल जाये
तो सम्भवतः जीवन का रहस्य खुले ...
धन्यवाद।

9 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहह..
    शानदार,जानदार..
    आभार आपका..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. भूमिका में राही मासूम रज़ा की लिखी शानदार पंक्तियाँ है। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
    सादर शुक्रिया मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. जिस को अब भी हो सियासत पे यक़ीन
    उस को ये मुल्क दिखाया जाए

    रविवार को उच्च न्यायालय में सुनवाई.... तोता राष्ट्रपति और कबूतर राज्यपाल की फ़ज़ीहत करायी जाए

    शानदार संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. सही कहा कुलदीप भाई कि सियासत के खेल अब समझ से परे हो गए हैं। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत शानदार संकलन कुलदीप जी ! मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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