स्नेहिल नमस्कार
आज हिमांचल मे बिजली गुल है
सूचना आई है..
भाई कुलदीप जी नहीं आएँगे सो आज
हम हैं और कल सखी श्वेता जी रहेंगी
...एक चिन्तन...
दहेज़ में बहू क्या लायी..
ये सबने पूछा..
लेकिन एक बेटी क्या क्या छोड़ आई..
किसी ने सोचा ही नहीं.
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हमेशा एक झाड़ू एक दीवार के
सहारे खड़ी पाई जाती है
कभी खाना आये भी
तो समय पर नहीं आता
बिना तारीखों के वो दिन
जिनमें वो इधर-उधर घूमती रहती है
ख़ाली,ज़िद्दी
और थोड़ी गड़बड़ाई सी
ये इंसानी हयात ,
जिस्मानी मुकाम,
उद्गम जिसका आब,
और चरम इसका
शबाब और शराब।
सियासी दावँ पेंच की जादूगरी
में तुझे सिखाऊंगा,
बस अखड़पन में न उलझ
क़लम अपाहिज है तब तक
जब तक कवि के हाथों का
खिलौना न बन जाये..
बोलों का ,गीतों का ,एहसासों का इम्तेहान है
बाग में हमने बुलाये अंदलीब आज तो
दिवारों को,मुंडेरों को और दर-ओ-दरवाजों को
जाना की सम्भालता है कोई नीब आज तो
यूँ तो रख रहा था वो रश्क-ओ-रंज बारहा
बन गया है देख लो खुद का रकीब आज तो
किताब में दबी उँगलियों में जब थिरकन हुई,
तो शब्द उलझकर लिपट गए,
नसों में तैरते हुए, हृदय के रंगमंच पर जा
करने लगे नृत्य,
भावनाओं का वाद्य वृंद भी देने लगा ताल,
मैल हमारे मन के ...सुबोध सिन्हा
ऐ हो धोबी चच्चा !
देखता हूँ आपको सुबह-सवेरे
नित इसी घाट पर
कई गन्दे कपड़ों के ढेर फ़िंचते
जोर से पटक-पटक कर
लकड़ी या पत्थर के पाट पर
डालते हैं फिर सूखने की ख़ातिर
एक ही अलगनी पर बार- बार
....
आज बस इतना ही
कल आ रही है सखी श्वेता जी
सादर
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग साधुवाद आपको छोटी बहना
जवाब देंहटाएंवो जादू वाली छड़ी मुझे भी चाहिए जो इतने कम समय में इतनी सुंदर प्रस्तुतीकरण हो जाती है
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर...
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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