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सोमवारीय विशेषांक में आपसभी का
हार्दिक अभिनंदन है।
आपने महसूस किया है बदलते मौसम में प्रकृति की गुनगुनाहट.... ऋतुओं के संधिकाल में प्रकृति की असीम ऊर्जा
धरती पर आच्छादित रहती है।
कास के फूलों का श्वेत मनमोहक रेशमी दुपट्टा ओढ़े धरा,बादलों की अठखेलियाँ हवाओं की मादक शीतलता ,तितलियों के मनमोहक झुंड,प्रवासी पक्षियों के कलरव शरद के आगमन का संकेत है।
प्रकृति से मानवीय छेड़छाड़ का दुष्परिणाम है कि आज शहरी संस्कृति के दमघोंटू वातावरण में हम बदलते ऋतुओं का आनंद लेने के बजाय ऋतुओंं के परिवर्तन का दर्द भोगते हैं।
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आज हमक़दम कोई विषय नहीं है अतएव
आज पढ़िये मौसम के अनुरूप मेरी पसंद की
कुछ कालजयी रचनाएँ
★★★★★
स्मृतिशेष सच्चिनान्द हीरानन्द वात्सयायन अज्ञेय
शरद
शरद की धूप में नहा-निखर कर हो गयी है मतवाली
झुंड कीरों के अनेकों फबतियाँ कसते मँडराते
झर रही है प्रान्तर में चुपचाप लजीली शेफाली
तुम्हें बाँध पाती सपनें में
तुम्हें बाँध पाती सपने में!
तो चिरजीवन-प्यास बुझा
लेती उस छोटे क्षण अपने में!
पावस-घन सी उमड़ बिखरती,
शरद-दिशा सी नीरव घिरती,
धो लेती जग का विषाद
ढुलते लघु आँसू-कण अपने में!
★★★★★
कुमार रवींद्र
सिकुड़ गए दिन
ठंडक से
सिकुड़ गए दिन
हवा हुई शरारती - चुभो रही पिन
रंग सभी धूप के
हो गए धुआँ
मन के फैलाव सभी
हो गये कुआँ
कितनी हैं यात्राएँ
साँस रही गिन
★★★★★
हरनारायण शुक्ला
शरद ..
स्वच्छ नीला आकाश, चिलचिलाती धूप,
देखता ही रह गया, शिशिर का यह रूप।
मन मचला कि क्यूं ना, बाहर घूम आऊं,
तापमान ऋण तीस, जाऊं तो कैसे जाऊं?
धवल चादर है बिछी, अवनि पर चहुंओर,
निष्ठुर हिमानी हवा ने, मचा रखा है शोर।
★★★★★
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आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है।
कल का अंक पढ़ना न भूलें
#श्वेता सिन्हा
बहुत ही शानदार अंक...
जवाब देंहटाएंसादर...
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलाजबाव प्रस्तुति, स्मृतियों को जीवंत करती रचनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति कालजयी रचनाओं से सजा संकलन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक सदाबहार रचनाओं का संकलन ,बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी
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