सादर अभिवादन..
आज का अंक फिर एक बन्द ब्लॉग से
हकीकत मे इस ब्लॉग में
2017 के बाद से कोई नई प्रस्तुति नहीं
बन्द नहीं कहना चाहिए
क्यूँकि इस ब्लॉग की लेखिका
फेसबुक में सक्रिय है
ब्लॉग लेखिका हैं नईदिल्ली निवासी
सखी नीलिमा शर्मा जी
तो चलिए..
इस बागीचे के चुनिन्दा पुष्पों पर एक नज़र
हम 2013 से 2017 की ओर आएँगे
अप्रैल 2013..
तन्हाई
सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं
तेरी हयात में इसने जगह बनायीं हैं
सुनो!!!
यूँ तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता !
तनहा होने में
घंटो खुद को खोना होता हैं
मई 2013
कितनी ओल्ड फैशंड हो तुम
इत्ती बड़ी सी बिंदी लगाती हो !!!
कल सरे राह चलते चलते
कह गयी एक महिला
जिसकी आँखों पर पर तो
ढेर सारा काजल था पर
माथा सूना सा
नही जानती वोह
बिंदी का फैशन से क्या लेना
3सितम्बर 2015
कुछ आईने टूट कर ही
चुभते हैं ,साबुत भी
कभी मुकम्मल तस्वीर न थे जो
कभी बेचारगी कभी मासूमियत
कभी मक्कारी का मुखोटा ओढ़े
यह आईने कई चेहरे लिय
उम्र भर तलाशते अपना वजूद
और इक छायाप्रति तक न पाकर
बिलबिला उठते अंधेरो में
12 अक्टूबर 2015
गिरह,गाँठें
फर्क लफ्जों का नही
महसूस करने का होता हैं
गांठो को
उनकी गिरहो को
उनके होने को
उनकी वजूद को
3 दिसम्बर 2015
मेरा शहर आवाज़ेंं लगा रहा
सपनेंं देखतीहूँ
मैंअक्सर आजकल
हरी वादियों के
घंटाघर कीबंद घडियोंं में
अचानक होते स्पंदन के
बाल मिठाई के
बंद टिक्की और
खिलती हुयी धूप के
और इस बार के हमक़दम
का विषय भी इसी ब्लॉग
शहर
हर शहर का अपना सँगीत होता हैं
कोई सरगम सा बजता हैं कानो में
कोई गाडियों के हॉर्न सा चीखता हैं
रचना भेजने की
अंतिम तिथिः 30 नवम्बर 2019
प्रकाशन तिथिः 2 दिसम्बर 2019
प्रविष्ठिया मेल द्वारा सांय 3 बजे तक
सादर।
अप्रतिम रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसादर..
सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चयन
bahut acha laga
जवाब देंहटाएं“Pradhan Mantri Vikas Yojana”
बहुत सुन्दर प्रयास।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति एवं सार्थक पहल
जवाब देंहटाएंवाह!!सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम
जवाब देंहटाएंरचनाकार को हार्दिक बधाई