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शनिवार, 23 नवंबर 2024

4316 ..इस अंक में दो टके का दो टूक

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को अपनी प्रस्तुति में पिरोने के लिए ...🙏
    आपकी आज की प्रस्तुति की भूमिका के केन्द्र में विराजमान हमारी बतकही के संदर्भ में बतला दूँ कि 😀 आप को उद्विग्न होने की कतई भी आवश्यकता नहीं है महाशय जी .. क्योंकि ..
    "दो टके का दो टूक - (३) ही इस बतकही का तीसरा और अंतिम भाग है, जिसे आज ही साझा करने वाले हैं हम .. शायद ...
    पर हाँ .. एक बात और कि "पुंश्चली" वाली बतकही का अभी समापन नहीं हुआ है .. उसको अभी भी .. और भी विस्तार मिलना है शेष है ..अगर इस ठठरी वाले पिंजर की साँसें शेष बची रही तो .. शायद ...
    फ़िलहाल तो "पूँछ हिली" (आपके कथन के अनुसार) की बतकही छोड़ कर "पूँछ हिलाने" वाले के प्रति पूजन, आदर- सम्मान नहीं तो .. कम से कम दयाभाव हम अपने मन में पनपा लें तो .. यही काफ़ी है .. बस यूँ ही ...

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  2. सुंदर अंक! मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार।

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