24 नवंबर को हम शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं।
इस दिन मुगल बादशाह औरंगजेब ने सिखों के 'नौवें गुरु' गुरु तेग बहादुर की
इस्लाम धर्म स्वीकार न करने पर गर्दन कटवा दी थी।
इस कारण 24 नवंबर को 'शहीदी दिवस' के रूप में मनाते हैं।
इसके पहले उन्होंने मुगल शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
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पीली तितलियां, कुछ विस्मृत दस्तकों के
शब्द तलाश करते हैं तुम्हारा बिम्ब,
सीने के अथाह गहराई में, शीर्षक के
सिवाय कुछ पढ़ने की
अब ख़्वाहिश नहीं होती ।
कबीरदास जी भी कह गए हैं कि "निन्दक नियरे राखिए" यानी कि शादी अवश्य कीजिए।
वैसे महान लोगों का अनुभव बताता है कि इसका लाभ भी शुरुआत के वर्षों में नहीं मिलता।
चार छह साल बाद ही नियरे रखने का लाभ मिल पाता है।
ये पुराण सतयुग से प्रारम्भ हुआ है
और अभी चल रहा है जब कि बाकी
पुराणों को लोग पढ़ कर भूल भी गए।
मगर, सच तो यह है कि
प्यार तुम हो,
तुम!
और तुम्हें
ना अपने जीवन से पोंछ सकती हूं,
ना झरा सकती हूं
मन की क्यारी से,
ना भूल सकती हूँ
बस एक बार गुनगुनाकर,
(पुस्तक- हथेलियों पर गुलाबी अक्षर)
( पृष्ठ -36)
चकरा रही है चील, लगाये टकटकी,
अपनी ही लाश पर.
सहमा-सिसका है साये में इंसान,
आतंक के, अपने ही साये के.
और फुद्फुदा रही है फद्गुदी,
चोंच मारकर अपनी ही परछाहीं पर!
बहुत मुश्किल था
तुम्हें अलविदा कहना भी,
आखिरी पल में
झुकी वो तुम्हारी नजर,
तन्हाई में चुभती है
अब तलक बनकर खंजर
आसान कहाँ मौन एकान्त मे
इस तपन में दहना भी !
अगर इस बेकार की बतकही से आज के बाद आतिशबाज़ी ना जलाने के लिए कुछेक सम्वेदनशील मानव का हृदय- परिवर्तन हो जाए .. एक नेक मन का हृदय- परिवर्तन हो जाए .. तो .. दिवाली तो .. सदियों से हर वर्ष आने की तरह अगले साल भी आएगी .. हम रहें ना रहें .. आगे भी आती ही रहेगी तो .. इस वर्ष ना सही .. हम अपनी भावी पौध- पीढ़ी को कुछ इस तरह मानसिक- हार्दिक रूप से सींचे की भावी दिवाली सालों-दर-साल प्रकाशोत्सव ही बन कर रहे .. प्रदूषण उत्सव में तब्दील होने से बच जाए .. ताकि हम सहर्ष अपनों को प्रदूषण उत्सव के स्थान पर सदैव प्रकाश उत्सव की शुभकामनाएं प्रेषित कर सकें .. बस यूँ ही *****बस
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी इस बतकही के तीसरे व अंतिम भाग को भी अपनी प्रस्तुति का हिस्सा बनाने के लिए ... 🙏
जवाब देंहटाएंआज की आपकी भूमिका गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस के बहाने उनकी ताउम्र की गयी सकारात्मक सृजनशीलता की यादों के साथ-साथ औरंगज़ेब जैसे आततायी के आतंकवादी कारनामों की बुरी यादों के अलावा हमारे देश में वर्तमान मुसलमानों के बारे में याद दिलाती है , कि ये सारे औरंगज़ेब जैसे आतंकियों के डर से इस्लाम धर्म अपनाए जाने वाले अपने बुज़दिल converted पुरखों की संतान हैं .. शायद ...
इस अंक की हार्दिक बधाई और सादर आभार🙏🏼🙏🏼
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