।।प्रातःवंदन।।
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफ़ान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में
कभी नाक को कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान में
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
थोड़ी हवा नाक में घुस गई ,घुस गई थोड़ी कान में,हाल भी आँखो की न पूछो तो ही अच्छा ये हाल है शहर का..एहतियात रखते हुए लिजिए बुधवारिय प्रस्तुतिकरण..
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें
जो जन्म देकर पाली गईं
अफीम चटा कर या गर्भ में ही
मार नहीं दी गईं,
ख़ुशक़िस्मत हैं वे
जो पढ़ाई गईं
माँ- बाप की मेहरबानी से,
ख़ुशक़िस्मत हैं वे
जो ब्याही गईं
खूँटे की गैया सी,
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कौन कहता है कि, मर्द रोते नहीं।
रोते तो हैं मगर आँसू बहाते नहीं।
पुरुषों का हृदय कोई पत्थर का नहीं होता
वहाँ भी धड़कती है एक जान किसी के लिये
एक पुरूष केवल पुरूष ही नहीं होता..
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कोई निकट ही नहीं
बहुत निकट है
पल-पल देख रहा है
देह की हर शिरा का स्पंदन
प्राणों का आलोड़न ..
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जिंदगी में कुछ पाने की ख़्वाहिश हमेशा होनी चाहिए क्योंकि ख्वाहिशें ही हकीक़त बनती हैं।जब ख़्वाहिशें हकीकत का जामा पहनती हैं तब जो आंतरिक सुख मिलता है, उसका रसास्वादन स्वयं के अलावा कोई नहीं कर सकता।
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तुमने प्रेम में अभिव्यकित चुनी
और मैंने चुना मौन हो जाना
तुमने मेरे साथ जोर-जोर हँसना चुना
और मैंनें तुमको हँसते देख मुस्कराना..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सुंदर रचनाओं का संगम।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सुप्रभात ! इब्न बतूता की कविता बचपन में सुनी थी, आज पुन:पढ़कर आनंद हुआ। सुंदर अंक, 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु पाँच लिंकों का आभार !
जवाब देंहटाएंचुनाव का लिंक नहीं लगा है |
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