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सोमवार, 18 नवंबर 2024

4311...न जाने क्यों अब ये सब चुप हैं...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

शब्द

कभी वे आसमान में चले जाते हैं,

दिखते हैं, पर पकड़ में नहीं आते,

कभी वे अंदर पैठ जाते हैं,

साफ़-साफ़ दिखाई पड़ते हैं। 

*****

गुलाबी अक्षर

सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन-सी उगती हुई कविता
इस रंगहीन वक्त में ....
*****
सुकून के एक पल भी मिलने नहीं आते हैं  
संवेदना से भरे हाथ मुझ तक नहीं पहुँचते हैं। 
*****


मेरे चार अटपटे-चटपटे गुरुजन

इटावा के पुरबिया टोला में स्थित मॉडल स्कूल में कक्षा चार-कक्षा पांच में पढ़ते समय मुझ शहरी बालक को टाट पर और पटरी पर बैठ कर ठेठ गंवारू माहौल को पूरे दो साल तक बर्दाश्त करना पड़ा था.
हमको गणित पढ़ाने वाले तिवारी मास्साब कक्षा में हमको जोड़-गुणा-भाग पढ़ाते समय बीड़ी का कश लगाने में ज़रा भी तक़ल्लुफ़ नहीं करते थे.
धूम्रपान के महा-विरोधी परिवार के एक जागरूक सदस्य की हैसियत से मैंने तिवारी मास्साब को टोकते हुए एक दिन कह दिया –
‘मास्साब ! आप क्लास में बीड़ी क्यों पीते हैं? मेरे पिताजी कहते हैं कि क्लास में बीड़ी पीने वाले को तो जेल में डाल देना चाहिए.’  
*****
फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. गुलाबी अक्षर कह रहा है "Sorry, the page you were looking for in this blog does not exist."

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. है , इस लिंक पर देखिए
      https://4yashoda.blogspot.com/2024/11/blog-post_17.html
      सादर वंदन

      हटाएं
  2. सुप्रभात ! पठनीय रचनाओं की सूचना देता सुंदर अंक, ह्रदय से आभार रवींद्र जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन।
    मंच पर स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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