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बुधवार, 20 सितंबर 2023

3886.. बिखरे हुए शब्द...

 ।। प्रातः वंदन।।

क्षितिज पर देखो धरा ने

गगन को चुम्बन दिया है,

पवन हो मदमस्त बहकी

मेघ मन व्याकुल हुआ है !

मंदिरों की घंटियों से

मन्त्र झर-झर झर रहे है,

नयन मलती हर कलि का

सुबह ने स्वागत किया है..!!

अनाम

त्योहारों के मौसम से कुछ पल बिताए चुनिंदा लिंकों पर..✍️

गणेशोत्सव सामाजिक एकाकार का उत्सव है

हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है,

बारिश का मौसम आ गया



बहुत अरसों से पहली बारिश में भीगा करती थी 

अपने चेहरे को ऊपर करके

दोनो हथेलियों को खोल कर 

पता नहीं क्यों वो भीगना

मुझे बहुत ही सुकून देता 

वो भीगने का सिलसिला




तेरी ख़ामोशी में 

बिखरे हुए लिहाफ

अब भी सिसकते हैं

घर के किसी कोने..

🌟

एक एहसास ...

सुबह की चाय में इलायची सी तुम,

दिन भर छूती हो ज़िस्म हवा की मानिंद,

रात होते ही उतर आती हो खुमारी सी,..

🌟

ये कैसी बारिश है?

पीले पत्ते शाख़ों पर हैं,

हरे झर रहे हैं,

पके फल पेड़ों पर हैं,

🌟

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

3 टिप्‍पणियां:

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