मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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खुला आसमान और विशाल धरती के बीच इंसान प्रकृति का एक अदना सा हिस्सा है। इंसान कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, कितना भी विज्ञान को जान जाये लेकिन प्रकृति हर बार कुछ ऐसा कर जाती है कि हर बार उसके करिश्मे के आगे विज्ञान भी घुटने टेक देता है।
इस दुनिया की सभी नकारात्मक शक्तियां मनुष्य जनित ही हैं। यदि मनुष्य प्रलोभनों, लोभ व स्वार्थ के अंधेरों में न भटकता तो उसे कृत्रिमता पर आधारित जीवन नहीं अपनाना पड़ता। इसी व्यवहार के कारण मानव और प्रकृति के बीच का तारतम्य टूट गया है। परिणामस्वरूप मानवीय विचार, भावनाएँ तथा ज्ञान पारदर्शी न रहकर द्वंद्वात्मक हो गए। अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएँ स्वार्थी मानवीय कृत्यों का दंड ही तो है।
आइये आज की रचनाओं के संसार में-
सिद्धि विनायक हे गणनायक
विघ्नहरण मंगलकर्ता ।
एकदंत प्रभु दयावंत तुम
करो दया संकटहर्ता ।
चौदह लोक त्रिभुवन के स्वामी
रिद्धि सिद्धि दातार प्रभु !
बुद्धि प्रदाता, देव एकाक्षर
भरो बुद्धि भंडार प्रभु !
धूप देह पर मद्धम-मद्धम होती है.
माँ की डाँट-डपट भी मरहम होती है.
आशा और निराशा पल-पल जीवन-रत,
माँ तो माँ है हर पल हर-दम होती है.
बाहर फूलों के धोखे में
काँटों से पाँव छिलवाये
ख़ुद पे यक़ीन कर
ख़ुदा में छिपा है ख़ुद
वह यक़ीन ही छू सकता उसे
जर्रे-जर्रे में जो मुस्कुराए
तू खुश है ही बेवजह
जैसे दुनिया की वजह नहीं
तलाश ख़ुशियों की
लहरें भी तो घूम घूम के वहीं आती है
तो क्या बेमतलब हो गयीं वो
शब्दों का पूरा समंदर है
और उनका निकलना
लहरों की संगत सा है
रूठ के शब्द चले गये
गले से कहीं दूर
नीचे उतर गये
उस दिन बिना मौन
इधर-उधर बिचड़ते और ध्यान लगाते कई तांत्रिक और साधु संत भी दिखाई दिए। इसी बीच कुछ चीज कौतुक का कारण बना । मंदिर में कबूतर और बकरे के बिचड़ने की प्रचुरता थी। रेलगाड़ी पर गया निवासी बड़े भाई अधिवक्ता मदन तिवारी मिले थे । उन्होंने मंदिर में बलि प्रथा को लेकर नकारात्मक बातें कही थी। मैं स्वयं माता के नाम पर जीव हत्या का आलोचक रहा हूं। कई मंदिरों में इसीलिए नहीं जाता ।
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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है
अगले अंक में।
इस दुनिया की सभी नकारात्मक शक्तियां मनुष्य जनित ही हैं। यदि मनुष्य प्रलोभनों, लोभ व स्वार्थ के अंधेरों में न भटकता तो उसे कृत्रिमता पर आधारित जीवन नहीं अपनाना पड़ता। इसी व्यवहार के कारण मानव और प्रकृति के बीच का तारतम्य टूट गया है।
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
आभार
सादर
सुप्रभात ! सारगर्भित भूमिका और एक से बढ़कर एक रचनाओं के चयन ने इस अंक को पठनीय बना दिया है, मन पाये विश्राम जहां को स्थान देने हेतु आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल ... आभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंअप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएँ स्वार्थी मानवीय कृत्यों का दंड ही तो है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित भूमिका एवं उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति।
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !
विविध विषयों को समेटे एक सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक... सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति
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