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सोमवार, 24 मई 2021

3038 ..........आँकड़ों से हक़ीक़त छुपाना भी क्या !

 धुआँ धुआँ सी ,

ज़िन्दगी में 
सुलग रही ,
चिंगारियाँ।
पल पल 
ज़िन्दगी में 
बढ़ती जा रही 
दुश्वारियाँ ।
सुकूँ की तलाश में 
भटकता है 
इंसान दर  - बदर ..
न कोई ठौर है 
न ही ठिकाना 
सोचता हो जैसे 
कहाँ करूँ 
ज़िन्दगी बसर । 
उम्र बीतती है 
साथ आदमी 
बीतता जाता है 
चश्मे पुरनम में 
अश्कों का सैलाब 
उतर आता है । 
फंसता है कंठ में 
कुछ धुआँ सा 
जो अंदर ही 
घुट जाता है । 

$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
संगीता स्वरुप  
23 - 5 - 2021 

नमस्कार .......  आज के माहौल में ऐसा ही कुछ कुछ सबका मन है .... .. मन नहीं लगता कहीं भी ... खुद को सँभालते हुए  कुछ प्रयास करते हैं लिखने पढ़ने का  लेकिन कह नहीं सकते कि  कितना पढ़ते हैं और कितना समझते हैं .....अब पढ़ने की बात चल ही पड़ी है तो  संदीप कुमार जी कह रहे हैं कि आदमी किताब में नींद खोजता है ....  देखिये ज़रा उनका फलसफा क्या कहता है .....

किताब में खोजता है एक अदद नींद




किताब के कुछ
पृष्ठ

जो मोड़ दिए

जाते हैं

अगली रात

पढ़ने के लिए।...


और ये कविता पढ़ जो मुझे लगा वो ये कि ......

कभी कभी इंसान इतना थक जाता है कि सोने के लिए ही किताबों का साथ ढूँढता है ...

किताबें पढ़ नए विचार मन में आते हैं .कुछ वैचारिक भूख बढ़ जाती है .... 
कई बार तो एक ही किताब को पढने से नए नए विचार सूझते जाते ...

*********************************************************************

आप कितना ही विचार करें सही गलत को समझें , 

लेकिन क्या ज़रूरी है जो आपको सही लगता हो वही न्याय व्यवस्था भी समझे .... 

और क्या पता समझते सब हैं लेकिन एक होता है न रसूख ..... 
बस उसका क्या करें ....   
अलक नंदा सिंह जी का लेख  पढ़िए और सोचिये कि हम कैसी न्याय व्यवस्था पर विश्वास किये बैठे हैं .... 



 



ज़फ़र_इक़बाल_ज़फ़र ने ब‍िल्‍कुल ठीक
कहा है कि-

   एक जुम्बिश में कट भी सकते हैं
   धार पर रक्खे सब के चेहरे हैं
   रेत का हम लिबास पहने हैं
   और हवा के सफ़र पे निकले हैं।

*************************************************


न्याय व्यवस्था हो या फिर जनता के लिए कोई व्यवस्था ....सब जगह हताशा - निराशा लिए लोग बस सोच रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं अपनी बात औरों तक पहुंचाने की ... 
आज अचानक आनन्द पाठक जी के ब्लॉग तक जाना हुआ ..... ऐसा लगा कि कोई खजाना हाथ लग गया हो .... आप भी कुछ मोती चुन ही लीजियेगा .... आश्चर्य ये है कि ये २००७ से ब्लॉग की दुनिया में हैं और इनके गीत और ग़ज़लों से  अब तक हम सब महरूम रहे .... 





अब सियासत बस गालियाँ रह गईं

ऎसी तहजीब को आजमाना भी क्या !

चोर भी सर उठा कर चले आ रहें

उनको क़ानून का ताज़ियाना भी क्या !




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और अब सब पढ़ते पढ़ाते जो हमेशा ही अपनी सोच से सकारात्मक रहे उनके लेखन में भी कहीं कहीं  निराशा  की सी भावना दिख रही है ...  प्रवीण पाण्डेय जी को बहुत समय से पढ़ रही हूँ और उनके उत्कृष्ट लेखन की कायल रही हूँ  .... निराशा में भी आशा तो दिख ही रही है ...आप भी पढ़ें 


दायित्वबोध







रहे अन्य कारण, विवशता प्रखर थी


नहीं कर सका, जो संजोया हृदय ने।


बड़ी चाह, ऊर्जा प्रयासों में ढाली,


नहीं स्वप्न वैसा पिरोया समय ने ।०।



************************************************


और आज  की  अंतिम  प्रस्तुति ......  कोरोना से लड़ाई ...... हौसला रहा बुलंद ....... किसी भी क्षण हार मन में न आई ..... . समय की नजाकत और अपनी  हिम्मत के साथ विवेक से परिस्थिति से जूझे .....  
एक संस्मरण जो कविता रावत जी ने साझा किया है जिसे लिखा है उनके श्रीमान जी ने .... 





कोरोना की मार झेलकर 10 दिन बाद हाॅस्पिटल से घर पहुंचा तो एक पल को ऐसे लगा जैसे मैंने दूसरी दुनिया में कदम रख लिए हों। गाड़ी से सारा सामान खुद ही उतारना पड़ा। घरवाले दूरे से ही देखते रहे, कोई पास नहीं आया तो एक पल को मन जरूर उदास हुआ लेकिन जैसे ही मेरे राॅकी की नजर मुझ पड़ी वह दौड़ता-हाँफता मेरे पास आकर मुझसे लिपट-झपट लोटपोट लगाने लगा तो मन को बड़ा सुकून पहुँचा, सोचा चलो कोई तो है जिसने हिम्मत दिखाकर आगे बढ़कर मेरा स्वागत किया। 



आज बस इतना ही अब विदा दीजिये ........... आशा है आपको हर रचना दिल के करीब महसूस होगी ..... 
अपनी प्रतिक्रिया से सूचित ज़रूर कीजियेगा ..... 
शुक्रिया 

आपकी ही 

संगीता स्वरुप 




31 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    अश्रुपूरित आगाज
    अश्कों का सैलाब
    उतर आता है ।
    फंसता है कंठ में
    कुछ धुआँ सा
    जो अंदर ही
    घुट जाता है ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाकई ,कुछ घुटता से हर वक़्त लगता है ।
      शुक्रिया यशोदा।

      हटाएं
  2. एक जुम्बिश में कट भी सकते हैं
    धार पर रक्खे सब के चेहरे हैं
    रेत का हम लिबास पहने हैं
    और हवा के सफ़र पे निकले हैं।
    बेहतरीन लिंक्स से सजा अंक..
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सटीक टीप के साथ प्रस्तुति हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता जी ,
      आपके द्वारा मिली सराहना मेरे लिए महत्त्व पूर्ण है । आभार ।।

      हटाएं
  4. बहुत अच्छा चयन...। आभारी हूं मेरी रचना को आपने सम्मान दिया। सभी रचनाकारों को खूब बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्‍कार संगीता जी, मेरी ब्‍लॉगपोस्‍ट को शम‍िल करने के ल‍िए बहुत बहुत धन्‍यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अलकनंदा जी उर्फ सुमित्रा जी ,
      आपकी धारदार लेखनी पाठकों तक पहुँचती है ।

      शुक्रिया

      हटाएं
    2. शुभ संध्या दीदी
      काफी कोशिशों के बाद भी
      नहीं पता कर सकी
      आज मालूम पड़ा
      अलक दी सुमित्रा दी हो गई
      सादर नमन..

      हटाएं
  6. दुःख,अवसाद से भरे दिन
    आकुल पल बीतते नहीं
    अश्क़ के धुँधलके में
    धुँधलाया हर मंज़र
    घुटन की छटपटाहट से
    मुक्ति के प्रयास
    शिथिल होते तन-मन
    प्रतीक्षा में हैं
    भयमुक्त ​भोर की
    ----//--/----
    प्रिय दी
    प्रणाम।
    मन को उद्वेलित करती आपकी लिखी भूमिका की समसामयिक पंक्तियाँ मनःस्थिति को पूर्णतया स्पष्ट कर रही है।
    आज बहुत बाद रचनाएँ पढ़ी है,
    आपके द्वारा चयनित सभी रचनाएँ बेहतरीन लगी।
    सारे तथ्यों को समेटकर बहुत ही प्रभावशाली विश्लेषण हर रचना पर विशेष लगी।
    लाज़वाब अंक के लिए आभार दी।
    ----
    सप्रेम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      भयमुक्त भोर की प्रतीक्षा में ही तो बीत रहे रात दिन ।
      तुमको सक्रिय देख कर अच्छा लग रहा ।
      सस्नेह ।

      हटाएं
  7. बहुत अच्छा अंक आदरणीया संगीता दीदी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      बहुत दिन बाद दिखी हो । कहाँ रहीं ?
      शुक्रिया ।

      हटाएं
    2. आपके पास ही तो हूँ दी, बस कुछ कारणों से मन बेचैन सा हो गया था। पढ़ती रही, प्रतिक्रियाएँ बहुत कम लिख पाई। बहुत सारा स्नेह आपके लिए।

      हटाएं
  8. पठनीयता का रोचक संग्रह। आभार स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रवीण जी ,
      सादर .....
      आप भी आभार देने लगे । आप यहाँ आये , यही हमारी सार्थकता है ।

      हटाएं
  9. शुभ संध्या..
    शाब्बाशी दें
    हमारे प्रिय चर्चाकार भैय्या रवीन्द्र जी को
    चर्चामंच में मैराथन चर्चा प्रस्तुत करने के लिए
    दिनांक सत्रह से चौबीस तक
    लगातार प्रस्तुति बनाने का रिकॉर्ड
    आपके नाम हुआ..साधुवाद
    मैं कायल हुई आपकी कार्यक्षमता की..
    शुभकामनाएं स्वीकार करें
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रविन्द्र जी को बधाई और शुभकामनाएँ ।
      वहाँ के सभी चर्चाकार सदस्य कुशल तो हैं न ?

      हटाएं
    2. धीरे-धीरे लाईन पर आ रहे हैं..
      कामिनी जी का नेटवर्क तूफान निगल गया
      कल सामान्य हो जाएगा
      सादर नमन..

      हटाएं
    3. प्रिय दीदी ,  आज की प्रस्तुति विशेष की  भूमिका की पंक्तियां  मन को भावुक कर गयी |  सच में ही  कितनी उलझनों से गुजरता जीवन दूभर सा हो गया है | उम्र बीतती है 
      साथ आदमी बीतता जाता है ////// यूँ जीना   पड़ता है पर  बिना किसी उत्साह और उमंग के | लगता है जिस  भावना से ग्रस्त हो गया था इन्सान वाही साध पूरी हुई है |   तकनीकी रूप से   ऊँचाइयाँ छूता मानव इसके मकडजाल में उलझा  सबसे  दूर होता जा रहा था पर कोरोना ने  एक झटके से  सबसे अलग करके इस  दूरी  को कई गुना   बढ़ा दिया | आज की रचनाओं की बात  कहूँ तो  संदीप जी की रचना  किताबों  के भावनात्मक पक्ष को ऊँचा रखते हुए किताबों  से मिलने वाले --गूंगे  के गुड-   से अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति का सटीक शब्दांकन है|  नींद के लिए मीठी लोरी है किताबें  | आनंद जी की रचना समां सामयिक वस्तुस्थिति का  आईना है | उनके ब्लॉग पर बहुत बार गयी हूँ | सक्रिय मानव जब  आशंकाओं और अनेक संशयों को मन में लिए एकान्तवास करता है  तो ऐसी स्थति को बहुत सार्थकता से उकेरा है प्रवीण जी ने |  अलकनंदा जी   प्रखर  लेखनी अवव्स्थाओं और अन्याय के खिलाफ  निर्भीकता से आवाज उठाती है | पत्रकारिकता के पक्षपातपूर्ण रवैये पर  बहुत सार्थक लेख है उनका |कविता जी ने  बहुत ही शानदार लेख लिखा है |   कोरोना की आफत से  सकुशल  वापस लौटे  अपने जीवन साथी के   अनुभवों और  अनुभूतियों को बहुत ही  बढ़िया ढंग से  लिखा है कविता जी ने | सभी रचनाकारों को सादर , सस्नेह शुभकामनाएं| कोरोना को पराजित कर आने वाले विजेताओं का हार्दिक अभिनन्दन |  आज के स्टार रचनाकारों के लिए उनकी रचनाओं की    सुंदर समीक्षा संजीवनी स्वरूप है |  आपका सस्नेह आभार इस संतुलित प्रस्तुति के लिए | सादर 


      हटाएं
    4. प्रिय रेणु ,
      तुमने मेरी लिखी चंद पंक्तियों की व्याख्या कर इसे पूर्णरूपता दे दी है । सच ही आज आदमी बीत ही तो रहा है ....
      बाकी सभी रचनाओं को आत्मसात कर तुमने अपनी विशेष प्रतिक्रिया से रचनाओं के चयन की सार्थकता कह दी है ।
      कविता रावत जी के ब्लॉग की पोस्ट उनके श्रीमान के द्वारा लिखी गयी है ,ये नितांत कविता जी के पति के अनुभव हैं ।
      तुम्हारी टिप्पणी मेरी प्रस्तुति के लिए संजीवनी का काम करती है ।
      सस्नेह ।
      दीदी

      हटाएं
    5. सभी गुणीजनों को सादर नमस्कार मेरा,
      हाँ दी तूफान ने मुंबई का जनजीवन रोक सा दिया था और आज नेटवर्क और बिजली के बिना तो अपाहिज हो जाते है हम,
      कल भी नेटवर्क काम चलाऊँ ही था बस जैसे तैसे काम हुआ।
      चर्चामंच के बाकी सदस्य तो स्वस्थ संबंधी समस्या से जूझ रहे थे मगर भगवान की कृपा से अब सब धीरे-धीरे उभर रहे है।
      शास्त्री सर ने कहा चर्चा मंच कुछ दिनों तक स्थगित कर दी जाए,(मुझ तक तो ये संदेश भी नहीं पहुंच पाया था )
      मगर रविंद्र सर ने उसे जारी रखा। उनकी कर्मठता को सत-सत नमन
      परमात्मा हमें जल्द ही इस मुश्किल घड़ी से निकले,बस यही प्रार्थना है।

      हटाएं
  10. भाई रविन्द्र जी को उनकी श्रम साध्य अनवरत प्रस्तुतियों के लिए बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय दीदी , आपने पिछले अंक में मुझे कोरोना सम्बंधित अनुभव लिखने के लिए आग्रह किया था |जल्द ही लिखूंगी | बहुत कोशिश की अभी तक लिख ना पायी |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इंतज़ार रहेगा ।
      वैसे भी तुम्हारे नव सृजन का इंतज़ार है ।

      हटाएं
  12. आपकी भूमिका में लिखी कविता ने दिल छू लिया सबके दिल की बात कह दी। बाकी संग्रह भी काफी रोचक हैं ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उषा जी ,
      मेरी लिखी चंद पंक्तियों पर तवज़्ज़ो देने के लिए शुक्रिया ।🙏🙏

      हटाएं
  13. आपकी लिखी बहुत ही सुंदर व हृदयस्पर्शी प्रस्तावना में आपकी रचित पंक्तियां बहुत कुछ कह गईं, आपको मेरा विनम्र नमन एवम वंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया जिज्ञासा ।
      अपना और अपने परिवार का ख्याल रखना ।
      सस्नेह ।

      हटाएं

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