हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
बस थोड़ा ही धैर्य रखने का काल है
घना अंधेरा छंट चला है..
जीवन से मत जाने दो..
दादा को अपनी इच्छानुरूप ‘अकस्मात मृत्यु’ मिली। अवसान के कुछ दिनों पहले ही उन्होंने नगेन्द्रश्री वीथिका, समदानीजी की बाड़ी में उनकी ही प्रेरणा से चल रहे आयोजन ‘बातचीत’ में कहा था - ‘ईश्वर से कुछ भी मत माँगो। उसने सब व्यवस्था की हुई है।’ फिर बोले थे - ‘मैं घनश्याम दासजी बिड़ला की इस बात से प्रभावित हुआ हूँ और ईश्वर से यही कहता हूँ कि मेरी चिन्ता तो तुझे है। मैं औेर कुछ नही माँगता। बस! माँगता हूँ तो अकस्मात मृत्यु।’
एक और कथा में नेहरु संसद में देश को हौसला दे रहे थे कि चीन द्वारा हड़प ली गई भूमि में यूँ भी कुछ नहीं उगता. इस पर महावीर त्यागी ने तुरंत जवाब दिया कि आपके सर पर भी कुछ नहीं उगता तो क्या इसे किसी और को सौंप दिया जाए।
कुछ पता तुम्हें है, हिटलर को
किसलिए अग्नि ने छार किया ?
या क्यों ब्रिटेन के लोगों ने
अपना प्रिय किंग उतार दिया ?
ये दोनों थे साली-विहीन
इसलिए लड़ाई हार गए,
वह मुल्क-ए-अदम सिधार गए
यह सात समुंदर पार गए।
अधरन लाली कान मा बाली,
आंखे काली चिबुक रचायो।।
हाथ मे कंगना मांग को रंगना,
सजना सजना बिनु व्यर्थ करायो।
बसंत को अंत कहां हौ कंत,
शब्द तो मिले नहीं, सीने के बींचोबीच आर पार बस दो गहरे जखम मिले थे
सलाखें पड़ गयी उनमें फिर, सड़ गए सपने, जीवन के सब प्रतिबिम्ब हिले थे
शब्द न गिर जाये कहीं तुम्हारे, इसलिए अभी तक पकड़ के रखा है
सलाखों को बस एक बार फिर से फेर दो कलम,
पक्का भूल जायेंगे सब जो शिकवे गिले थे
सादर नमन दीदी
जवाब देंहटाएंआनन्दित करने वाली प्रस्तुति
सदाबहार..
सादर..
बेहद प्रभावी प्रस्तुति...।
जवाब देंहटाएंव्वाहहहह
जवाब देंहटाएंशानदार।..
सदा की तरह..
सादर नमन..
हास परिहास करता अंक,हमे भी आनंदित कर गया,बहुत शुभकामनाएं विभा दीदी,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएकदम समय के हिसाब से इस निराशा काल में वांछित हास्य संकलन। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत उत्साहित प्रस्तुति
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