जय मां हाटेशवरी..... सादर नमन......
आज न जाने क्यों......
बाबा नागा अर्जुन जी की ये कविता याद आ गयी.....
नागार्जुन ने यह कविता आपातकाल के प्रतिवाद में लिखी थी।
ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो
प्रजातंत्र को कौन पूछता, तुम्हीं बड़ी हो
डर के मारे न्यायपालिका काँप गई है
वो बेचारी अगली गति-विधि भाँप गई है
देश बड़ा है, लोकतंत्र है सिक्का खोटा
तुम्हीं बड़ी हो, संविधान है तुम से छोटा
तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का, तुम्हीं बड़ी हो
खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो
गांधी-नेहरू तुम से दोनों हुए उजागर
तुम्हें चाहते सारी दुनिया के नटनागर
रूस तुम्हें ताक़त देगा, अमरीका पैसा
तुम्हें पता है, किससे सौदा होगा कैसा
ब्रेझनेव के सिवा तुम्हारा नहीं सहारा
कौन सहेगा धौंस तुम्हारी, मान तुम्हारा
हल्दी. धनिया, मिर्च, प्याज सब तो लेती हो
याद करो औरों को तुम क्या-क्या देती हो
मौज, मज़ा, तिकड़म, खुदगर्जी, डाह, शरारत
बेईमानी, दगा, झूठ की चली तिजारत
मलका हो तुम ठगों-उचक्कों के गिरोह में
जिद्दी हो, बस, डूबी हो आकण्ठ मोह में
यह कमज़ोरी ही तुमको अब ले डूबेगी
आज नहीं तो कल सारी जनता ऊबेगी
लाभ-लोभ की पुतली हो, छलिया माई हो
मस्तानों की माँ हो, गुण्डों की धाई हो
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है प्रबल पिटाई
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है 'इन्द्रा' माई
बन्दूकें ही हुईं आज माध्यम शासन का
गोली ही पर्याय बन गई है राशन का
शिक्षा केन्द्र बनेंगे अब तो फौजी अड्डे
हुकुम चलाएँगे ताशों के तीन तिगड्डे
बेगम होगी, इर्द-गिर्द बस गूल्लू होंगे
मोर न होगा, हंस न होगा, उल्लू होंगे
कोरोना जंग
सबक
इस बंधनकाल नें
बहुत कुछ हमको सिखा दिया
कैसे जीवन जीना है
पाठ यह पढा़ दिया
भूल चले थे
जिन बातों को
याद उन्हें दिला दिया ।
संबल
हर पल, आबद्ध रहा मन,
यूँ, मैं था, ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
एकाकी, मैं कब था!
कुछ यादें थी,
यूँ, मैं था,
ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था!
अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है
जहाँ एक ओर अमीरी मनुष्य के समस्त कार्यों का साधन है वहीँ वह कभी कभी उसके चरित्र का हनन भी करती है। अधिक धन प्राप्त करके व्यक्ति कभी कभी अभिमानी व चरित्रहीन
बन जाता है। बिहारी कवि ने कहा भी है -
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय।।
अर्थात स्वर्ण की चमक व्यक्ति को धतूरे से भी अधिक नशीला बना देती है। अमीरी के मद में मनुष्य अपने मित्रों सम्बन्धियों को भूल जाता है। शराब ,जुआ आदि गंदे
व्यवसनों में पड़ जाता है। वह अपने स्तर से निम्न लोगों का सम्मान करना ही भूल जाता है। वह अपने जीवन में धन को सम्पूर्ण महत्व देने लगता है। उसके मन में दुनिया
का सबसे बड़ा अमीर बनने की महत्वकांक्षा जागृत हो जाती है तो वह येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की पिपासा से ग्रसित होकर अपने मन की शांति सुख
व चैन से रहित हो जाता है।
घोषणाएं
कि सिर्फ़ घोषणाओं से पेट नहीं भरता
घोषणाओं पर कर यक़ीन
आम-आदमी है
तिल-तिल मरता।
ये जिंदगी पथ है मंजिल तरफ जाने का,
जिंदगी गीत है तुफान से टकराने का,
आराम से सो जाने की बदनामी है,
जिंदगी गीत है मस्ती में सदा गाने का।।
अपने जीवन काल में रेणु सौ के पार कहानियों की संख्या न पार कर सके। उपन्यास भी अंगुलियों पर गिनने जितने। फिर ऐसा कौन सा रहस्य है कि प्रेमचंद के बाद हिन्दी
जगत के दूसरे शीर्षस्थ कथाशिल्पी। वह कारण है, अनुभूतियों का अलहदापन, शब्दों की अप्रत्याशित सोंधी गंध और चेहरों के समुद्र में गहनतः उतरने की आशिकी। रेणु
चित्रकार हैं, तो बुनकर भी। रंगसाज है, धुन साधक भी, खेतिहर हैं तो माली भी। एक साथ कितनी भूमिकाओं में चोला बदल बदल कर आते हैं वे, कहना इतना आसान नहीं। विषय
के साथ इंसानियत बरतने के सलीका ही रेणु ने बदल दिया। उनकी बुनावट में दर्शन की गूंजें कम सुनाई देंगी, यदि हैं भी तो बस यदा कदा उठ चली बयार की तरह। रेणु की
कलम जड़ को निर्जीव मानती ही नहीं, वह समूचे गंवई अस्तित्व से संवाद करती है। शब्दों की पकड़ से परे का संवाद। सच कहिए तो संवाद का असल स्वरूप मौन के क्षणों में
खिलता है, बाहर प्रकट होते ही स्थूल और आधारण रह जाता है। घटना, चरित्र, चेहरे और वस्तुएं रेणु के चुम्बकीय मानस में सजीवता लिए दिए जीवित होते हैं।
इतना ही
धन्यवाद।
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंकोरोना काल भी एक तरह
ही था आपातकाल कभी..
सबक इस बंधनकाल नें
बहुत कुछ हमको सिखा दिया
कैसे जीवन जीना है
पाठ यह पढा़ दिया
भूल चले थे
जिन बातों को
याद उन्हें दिला दिया
सादर..
वर्तमान विश्व को आत्मस्थ कर पिरोया संकलन। आभार।
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर संकलन कुलदीप जी ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, कुलदीप भाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर तथा रोचक सूत्रों से सजा अंक,सादर शुभकामनाएं कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप ठाकुर जी🙏
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