सादर अभिवादन।
अब हम
विकसित देशवासी हो गये हैं
विकासशील देश का दर्जा था कभी
सारी क़वायद ज़्यादा टैक्स के लिये
अरे भाई!
नाम दरोगा रखने से
लोग कहाँ डरने वाले हैं!
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
ठूँठ पर
ठहरी नरम ओस की
अंतिम बूँद को
पीने के बाद
मतायी हवाओं के
स्नेहिल स्पर्श से
फूटती नाजुक मंजरियाँ,
मेरी आँखों के अश्रु भी, तुझे पिघला सके न क्यों
तेरी नफ़रत की गठरी को, दिवस और रात ढोया हूँ।
कदर तुझको नहीं मेरी, तेरी खातिर सहा कितना,
मिली रुस्वाइयाँ फिर भी, प्रीत - माला पिरोया हूँ ।
शीशे की दीवारें शीतल हवा का स्वाँग,
धन-दौलत को सुख जीवन का बता,
प्रकृति से विमुख कृत्रिमता को पनाह,
मानव कैमिकल का स्वाद चख़ रहा।
चाहे लाख दर्द हो मेरे, चाहे हंसने की कोई वज़ह ना हो
चाहे नोकरी की चिंता रात को सोने नहीं देती हो
चाहे मेरा आज मुझ पर हंस रहा हो
लेकिन मेरी कोशिश बचपन सा खुश दिखने की ही होगी
बचपन तो अब नहीं आएगा वापिस
लेकिन कम से कम मुलाकात तो हूबहू सी होगी
माँ ऐसा कुछ नहीं है..!कल एक खुशखबरी लेकर आया था। तेरी बहू ने सारा मूड खराब कर दिया..!
अच्छा जरा मैं भी तो सुनूँ क्या खुशखबरी है..?यह बात सुनते ही गुंजन रसोई से बाहर आई।
माँ प्रिया का रिश्ता तय कर दिया है...!लड़का सरकारी नौकरी में हैं, अच्छी-खासी तनख्वाह मिलती है..!
पापा उसकी उमर कितनी है..? रोहित ने पूछा। उम्र कोई ज़्यादा नहीं है। मेरे और गुंजन जितना ही फर्क है।
फिर तो यह शादी नहीं होगी..! किसी के कुछ बोलने से पहले आलोक की माँ बोल पड़ी।
सुबह उठे तो पिछले कुछ दिनों की तरह फुहार पड़ रही थी और मंद पवन भी बह रही थी, यानि घूमने के लिए आदर्श मौसम ! लौटकर प्राणायाम किया. सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, आज से नैनी के बच्चों का स्कूल गर्मियों के अवकाश के बाद खुल गया है. वह घर काम आधा करके ही उन्हें स्कूल छोड़ने गयी है. आज कई दिनों बाद अपने पुराने समय पर ध्यान किया, परमात्मा से लगन लगी रहे तो भीतर कैसी शांति रहती है.
काश ! उसे भी बाजारों में मिलने वाली मिलावटी, बनावटी और सजावटी मेहंदी की तरह दो-चार दिनों में ही रंग बदलना आ गया होता..
परंतु उसे तो उस उपवन की सुंगधित मेहंदी की चाह थी , जहाँ वह अपनी दादी संग जाया करता था.. वह हिना जो एक बार हाथों पर चढ़ जाती , तो उसकी लालिमा उतरती न हो .. ।
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज की प्रस्तुति में सवाल उठाने वाली भूमिका एवं श्रेष्ठ रचनाओं के मध्य मेरे अत्यंत साधारण से सृजन को भी ऐसे प्रतिष्ठित ब्लॉक पर आपके माध्यम से स्थान मिल गया , इसके लिए हृदय से आपका धन्यवाद, आभार एवं प्रणाम।
जवाब देंहटाएंअच्छी भूमिका
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
वाह!खूबसूरत प्रस्तुति रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों कौ हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर प्रस्तुति. विचारणीय काव्यात्मक भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं को पेश किया आदरणीय सर.सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये सादर आभार आदरणीय.
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएं.. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका शुक्रिया रवीन्द्र जी 🙏
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