सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
इंसानों के लिए जो होते विष
धारण करने वाले हैं जगदीश
कर देता संज्ञानाश
धतूरा
घुन लगी कविताएँ,
जूठन में बची थोड़ी सी सच्चाई,
हँसी जिस पर जाले जमे हुए हैं,
एक चूहे की लाश, और मेरा साहस,
वर्षों बाद आज मैं छू रहा हूँ धतूरे का फूल
तो छू रहा हूँ अपने दोस्तों को
छू रहा हूँ उनकी हँसी उनके विश्वास को
देख रहा हूँ पीछे मूड़ कर
-उजाले बंद करके ;
कवि पर कर लगाकर ,
-अस्मिता को छुआ है ;
लोग सब जानते हैं ,
-आखिर क्या हुआ है ?
धतूरा खाक कर कोई तो मर जाता और कोई पागल हो जाता।
उन दिनों भी उसके धतूरे के प्रभाव से एक व्यक्ति पागल होकर
नगर की सड़कों पर घूमा करता था। लेकिन धतूरा खिलाने वाले
व्यक्ति के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं था,
इसलिए वह खुलेआम सीना तानकर चला करता।
इसके पीछे पुराणों में जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो भगवान भोलेनाथ एक सन्यासी हैं और वह कैलाश पर्वत समाधि लगाते हैं| पहाड़ों पर होने वाली बर्फ़बारी की वजह से यहाँ बहुत अधिक ठंडी होती है| गांजा, धतूरा, भांग जैसी चीजें नशे के साथ ही शरीर को गरमी भी प्रदान करती हैं। जो वहां सन्यासियों को जीवन गुजारने में मददगार होती है। भांग-धतूरे और गांजा जैसी चीजों को शिव से जोडऩे का एक और दार्शनिक कारण भी है। ये चीजें त्याज्य श्रेणी में आती हैं, शिव का यह संदेश है कि मैं उनके साथ भी हूं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं। जो मुझे समर्पित हो जाता है, मैं उसका हो जाता हूं।
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आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसदा की तरह अनोखी प्रस्तुति
सादर..
अर्थपूर्ण सुंदर प्रस्तुति ....महाशिवरात्रि की बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति💯‼️
जवाब देंहटाएंमन को कर दे विभोर,इस तरह बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और अलग सी प्रस्तुति आदरणीया विभा दी,
जवाब देंहटाएं"कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
"इहि खाए बौराय जग, उहि पाए बौराय।।
बात धतूरे की हो तो यही दोहा याद आता है। सादर।