व्यतीत
ये कहानी 1963 में मनोरमा में छपी थी ।
माँ की ये कहानी अब भी कितनी कंटेमप्ररी है .
मैं पुलक भरी हैरानी , गर्व और खुशी से भरी हुई हूँ।
छोटी सी है मेरी इच्छा
कि, मैं बच्चा बन जााऊँँ
लोरियां सुनकर मात -पिता की, उनका साथ मैं पाऊँ ।
कपट झूठ और नफरत का, रिश्ता ना कोई निभाऊँ,
गुड्डा- गुडिया का खेल खेल कर ,सबका मन बहलाऊँ ।।
चंचल किरणें
सरल तरल जिन तुहिन कणों से, हँसती हर्षित होती है,
अति आत्मीया प्रकृति हमारे, साथ उन्हींसे रोती है!
अनजानी भूलों पर भी वह, अदय दण्ड तो देती है,
पर बूढों को भी बच्चों-सा, सदय भाव से सेती है॥
कश्मीर से आया ख़त
ये रंग इतने बेहतरीन नहीं होंगे,
झेलम का पानी इतना साफ,
इतना गहरा नीला. मेरी मुहब्बत
इतनी जाहिर.
और मेरी याद धुंधली होगी
"चुनमुन"
प्रश्न -- लिखने की वजह से पढ़ाई का नुक्सान होता है क्या?
बिल्कुल नहीं। मुझे पढ़ना अच्छा लगता है और
मैथ्स मेरा फेवरिट सब्जेक्ट है। परीक्षा में हमेशा अच्छे मार्क्स लाती हूँ।
रेग्युलर स्कूल जाती हूँ और टीचर्स का भी पूरा सपोर्ट मिलता है..
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पुन: मिलेंगे
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अब इस सप्ताह का विषय
हम-क़दम-109
रचनाकार हैं
कविवर डॉ.शिवमंगल सिंह 'सुमन'
प्रेषण तिथिः 29 फरवरी 2020
प्रकाशन तिथिः 02 मार्च 2020
ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा
सदाबहार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
वाह!!विभा जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की शुरुआत को देखकर ही जान जाती हूँ कि ये विभा दी की प्रस्तुति है। आपके व्यापक पठन और चिंतन का आभास देती अलग सी, बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमाननीय राजेंद्रबाबू का यह पत्र हमारे यहाँ हिंदी की पुस्तक में था किंतु संपूर्ण नहीं था। यहाँ साझा करने हेतु आभार दी। ऐसे पत्र हमारी अनमोल धरोहर हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय , प्रेरक प्रस्तुति आदरणीय विभा दीदी। माननीय राजेंद्र बाबू का पत्र , उनके आदर्श सब पढ़कर बहुत अच्छा लगा। सभी लिंक पढ़ने योग्य हैं । साथ में नन्ही कवयित्री सुहानी के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ। आपको साधुवाद इस सुंदर अंक के लिए । आज के सुंदर अंक के साथ उनका भी अभिनंदन जो आज चार साल बाद अपना जन्मदिन मना रहे हैं। सादर प्रणाम और पुनः आभार 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत गहन संवेदना समेटे हृदय स्पर्शी भुमिका।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक ।
दिल की गहराइयों से हार्दिक आभार
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