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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

1688... आज 29 फरवरी 2020


डॉ राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात अपना शेष जीवन पटना में बिताया था जो 'सदाकत आश्रम' के नाम से जाना जाता है और गंगा नदी के सामने है। मैं उस भवन की तस्वीर आपलोगों से साझा नही कर सकता हूँ क्योंकि उसे देखकर बहुत ज्यादा ग्लानि होगी .....राजनीति का यह संत यदि अपने वकालत के पेशे में ही रह जाता तो शायद तीन मूर्ति भवन से भी ज्यादा भव्य इनका अपना आलीशान अहाता होता। सदाकत आश्रम बिल्कुल ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे है। पर दो सुखद बात यह भी है कि पहला तो विश्व प्रसिद्ध 'दीघा का मालदह आम' सिर्फ इसी बगीचे में होती है और दूसरा यह कि इस पोस्ट को लिखने वाला 'कानून में डॉक्टरेट' का निवास भी इस आश्रम से कुछ मिनटों की ही दूरी पर स्थित है।

मुझे बहुत अच्छा लगता है, बेहद ख़ुशी मिलती है... जब कुछ विशेष करना मेरे हिस्से आ जाता है... आज का प्रणामाशीष पुन: चार साल के बाद मिलेगा... आज का दिन विशेष बना लेना है... जोड़-घटाव करना है.. कैसे हुए : कैसे करने हैं : समय को..

व्यतीत

ये कहानी 1963 में मनोरमा में छपी थी ।
माँ की ये कहानी अब भी कितनी कंटेमप्ररी है .
मैं पुलक भरी हैरानी , गर्व और खुशी से भरी हुई हूँ।

छोटी सी है मेरी इच्छा

कि,  मैं  बच्चा बन जााऊँँ
लोरियां सुनकर मात -पिता की, उनका साथ मैं पाऊँ ।
कपट झूठ और नफरत का, रिश्ता ना कोई निभाऊँ,
गुड्डा- गुडिया का खेल खेल कर ,सबका मन बहलाऊँ ।।

चंचल किरणें

सरल तरल जिन तुहिन कणों से, हँसती हर्षित होती है,
अति आत्मीया प्रकृति हमारे, साथ उन्हींसे रोती है!
अनजानी भूलों पर भी वह, अदय दण्ड तो देती है,
पर बूढों को भी बच्चों-सा, सदय भाव से सेती है॥

कश्मीर से आया ख़त

 ये रंग इतने बेहतरीन नहीं होंगे,
झेलम का पानी इतना साफ,
इतना गहरा नीला. मेरी मुहब्बत
इतनी जाहिर.
और मेरी याद धुंधली होगी

"चुनमुन"

प्रश्न -- लिखने की वजह से पढ़ाई का नुक्सान होता है क्या?

बिल्कुल नहीं। मुझे पढ़ना अच्छा लगता है और
मैथ्स मेरा फेवरिट सब्जेक्ट है। परीक्षा में हमेशा अच्छे मार्क्स लाती हूँ।
रेग्युलर स्कूल जाती हूँ और टीचर्स का भी पूरा सपोर्ट मिलता है..

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पुन: मिलेंगे
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अब इस सप्ताह का विषय
हम-क़दम-109
विषय है
'पतवार' 
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

रचनाकार हैं
कविवर डॉ.शिवमंगल सिंह 'सुमन'
प्रेषण तिथिः 29 फरवरी 2020
प्रकाशन तिथिः 02 मार्च 2020
ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सदाबहार प्रस्तुति..
    सादर नमन..

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  2. वाह!!विभा जी ,बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रस्तुति की शुरुआत को देखकर ही जान जाती हूँ कि ये विभा दी की प्रस्तुति है। आपके व्यापक पठन और चिंतन का आभास देती अलग सी, बेहतरीन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. माननीय राजेंद्रबाबू का यह पत्र हमारे यहाँ हिंदी की पुस्तक में था किंतु संपूर्ण नहीं था। यहाँ साझा करने हेतु आभार दी। ऐसे पत्र हमारी अनमोल धरोहर हैं।

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  5. बहुत ही सराहनीय , प्रेरक प्रस्तुति आदरणीय विभा दीदी। माननीय राजेंद्र बाबू का पत्र , उनके आदर्श सब पढ़कर बहुत अच्छा लगा। सभी लिंक पढ़ने योग्य हैं । साथ में नन्ही कवयित्री सुहानी के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ। आपको साधुवाद इस सुंदर अंक के लिए । आज के सुंदर अंक के साथ उनका भी अभिनंदन जो आज चार साल बाद अपना जन्मदिन मना रहे हैं। सादर प्रणाम और पुनः आभार 🙏🙏🙏

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  6. बहुत गहन संवेदना समेटे हृदय स्पर्शी भुमिका।
    सुंदर अंक ।

    जवाब देंहटाएं

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