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बुधवार, 9 अक्टूबर 2019
1545..दर्द उठे तो सूने पथ पर पाँव बढ़ाना चलते जाना..
11 टिप्पणियां:
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त्योहारों, वारों के बाद अब समय जग की रीति- नीति के साथ..यह प्रस्तुति बड़ी ही सटीक लगी। आगे कर्म पथ का विस्तार है रही त्योहारों का सार है।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात।
रीति- नीति के साथ..यह प्रस्तुति बड़ी ही सटीक लगी। आगे कर्म पथ का विस्तार है यही त्योहारों का सार है।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात।
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहँसा ज़ोर से जब
तब दुनिया बोली
इसका पेट भरा है
अप्रतिम...
सादर..
सराहनीय संकलन
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंविजय पर्व के आत्ममंथन से जुड़ी रचनाओं का अद्वितीय संकलन.
जवाब देंहटाएंअलग-अलग दृष्टिकोण. विभिन्न आयाम.
इस संकलन में स्थान देने के लिए सहर्ष विनम्र आभार पम्मी जी.
सदैव की भांति बेहतरीन सामग्रियों का चयन....
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार !
सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार भुमिका के साथ प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक संयोजन, सभी रचनाएं उच्चस्तरिय सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को पांच लिंको में शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया पम्मी जी ।
हर बार की तरह ... लाजवाब प्रस्तुति ... सुन्दर संकलन ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...