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सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

1543..हम-क़दम का इक्यानबेवाँ अंक...परदा

स्नेहिल अभिवादन
--------
सोमवारीय विशेषांक में आपसभी का हार्दिक अभिनंदन है।
परदा/पर्दा/चिलमन
यानि एक ऐसा आवरण जिसके सामने वाली कोई भी 
वस्तु या व्यक्ति दृष्टि से छिपी हो।
परदा शब्द का प्रयोग मुहावरों में अधिकांश देखा जाता है।
जैसे: परदा डालना,परदा हटना,आँख में परदा
पड़ना इत्यादि।
जैसे संदर्भ वैसे वाक्य प्रयुक्त।


कभी परदा जरूरी होता है   
कहीं परदा मजबूरी होता है
सजावट तो कभी सहूलियत
परदा ओट नहीं दूरी होता है
जीवन के चारों ओर घूमता
परदा मन की धुरी होता है

★★★★★

आदरणीया साधना वैद
जीवन का सच्चा और सही अर्थ है !
दुनिया उल्टी राह पर चल पड़ी है  
आजकल मर्द हो गए हैं पर्दानशीन  
और औरत हो गयी है बेपर्दा,  
आधुनिकता के नाम पर
आज की नारी विचरण करती है

★★★★★

आदरणीया अनीता सैनी
दौलत का फ़लक तोड़, 
जुगनू उसमें चमकाने लगे, 
 मज़लूमों का मरहम दर्द को बता, 
वे दर्द का पैमाना झलकाने लगे |

ओझल हुई हया पलकों से, 
वो बरबस चेहरा चिलमन में छिपाने लगे | 

★★★★★

आदरणीया अभिलाषा चौहान
नशा मुक्ति केंद्र में बेटे को तड़पता देख
ममता की आंखों से अश्रुधारा बह रही
थी,मात्र अठारह वर्ष का था उसका बेटा।
बड़ी मनौतियां मांगी थी,तब गोद भरी और
आज यह दशा...!उसे पश्चाताप हो रहा था
कि उसने बेटे की गलतियों पर सदा पर्दा
डाला...कभी पति को सच नहीं बताया ,

★★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना
आपस की बातों को 
बातों तक ही रहने दो
जो भी छिपा है दिल में
उजागर ना करो
नाकाम मोहब्बत को
परदे में ही रहने दो |
वक्त के साथ बहुत
आगे निकल गये हैं

★★★★★★

आदरणीया कामिनी सिन्हा
आज ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं कि कल  जिन्होंने भी संत का नकाब ओढ़ रखा था ,आज वो दुनिया के सामने बेनकाब हैं। लाख पर्दे में अपने गुनाहो को छुपा लो वो एक न एक दिन सबको नजर आ ही जायेगा। क्यों छुपाये हम अपनी खूबसूरती या बदसूरती को किसी से ? क्यों किसी भी वस्तु की हकीकत को छुपाने के लिए उस पर आवरण रख दे ? क्यों मुख से ऐसा कुछ निकले जिसके प्रभाव को कम करने के लिए हमे उसके ऊपर कोई दूसरी बात कह कर पहली  बात पर आवरण डालना पड़े ? क्यों हम ऐसा कोई भी काम करे जिस के लिए  हमे खुद से , खुदा से या जग से मुँह छुपाना पड़े ?
★★★★★★

आदरणीया सुजाता प्रिय

मत गौर करो,
पर्दे की रंग -रूप सुंदरता पर,
पर्दे की  शोभा तो  बस लाज  छुपाने में है।

नजरों से बचने
के लिए तन को ढकते हैं हम,
पर्दा तो नग्नता देख,नजरें घुमा हट जाने में है।

★★★★★

आदरणीया कुसुम कोठारी
एक यवनिका गिरने को है ....

एक यवनिका गिरने को है।
जो सोने सा दिख रहा वो
अब माटी का ढेर होने को है
लम्बे सफर पर चल पङा
नींद गहरी सोने को है।
एक यवनिका .....।

★★★★★★★

आदरणीया अनुराधा चौहान
बीत गए बरसों .....

पर्दे, घुंघरू,रेहट,सरसों
बीत गए इन्हें देखे बरसों
सब चारदीवारी में सिमट गए
पत्थरों के शहर में जो बस गए

★★★★★★
एक फिल्मी गीत सुनिए

आज का हमक़दम आपको कैसा लगा?
आप सभी की बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की
प्रतीक्षा रहती है।

हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।

#श्वेता

11 टिप्‍पणियां:

  1. मातरानी की जय हो..
    बढ़िया और बढ़िया..
    शुभकामनाएं..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. संक्षिप्त सूत्रों का संकलन लेकिन सभी रचनाएं अनुपम ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे ! सभी साथियों को पर्व नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजबाब प्रस्तुति |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद श्वेता जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन हमक़दम की प्रस्तुति 👌
    शानदार रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार दी |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन!हर रचना अनुपम।प्रस्तुत करने का ढंग भी अनुपम।मेरी रचना को भी साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद। नवमी के शुभअवसर पर शुभकामनाएँ एवं आशीर्वाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को ढेरो शुभकामनाएं ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी ,आप सभी को रामनवमी की हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं

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