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सोमवार, 27 मई 2019

1410 हम-क़दम का बहत्तरवाँ अंक

हा हा। बेचारा गलीचा। 
सादर अभिवादन...
गलीचा..नाम से सभी वाकिफ हैं
अभी-अभी इस पर रोशनी पड़ी है..
फेसबुक,ट्विटर और इंस्टाग्राम में चर्चे बड़े हैं.

जमीन में बिछा नहीं इक गलीचा कि 
कितनी सुर्खियों में आ गया 
जन्म सफल हुआ चलता हुआ कोई 
उसपर जो गया औ' वही आ गया।
.......
उदाहरणार्थ दी गई रचना

गलीचा
पहली 
बार दिखा है 
मन्दिर के 
दरवाजे तक 
गलीचा 
बिछाया गया है 

कितना कुछ है 
लिखने के लिये 
हर तरफ 
हर किसी के 

अलग बात है 
अब सब कुछ 
साफ साफ 
लिखना मना है


दीदी साधना वैद
मैदान में प्रतियोगिता के लिए
हो चुके हैं सारे प्रबंध और
रास्तों पर बिछा दिए गए हैं
कुशल कारीगरों के हाथों बने हुए
बड़े ही खूबसूरत और कीमती खेस !
लक्ष्य तक पहुँचने के लिए  
सारे प्रत्याशी हैं बेकरार
और अपने अपने गलीचों पर खड़े
बेसब्री से कर रहे हैं
रेस के शुरू होने का इंतज़ार !


मौसी आशा सक्सेना
उसे बनाने में
चुन चुन कर धागे रंगवाए थे
मन पसंद रंगों से सजाए थे |
प्यारा सा नमूना चुना था
इतना विशाल  गलीचा बनाने को
नीले ,हरे रंग के ऊपर उठते चटक रंग
देखते ही मन उसे पाना चाहता 


भाई शशि गुप्ता
 ग़लीचे को उद्बोधन

ए ग़लीचा ! वहम ये रहने दो..

कर के बदरंग तुम अपनों को
ग़ैरों को क्यों रंग दिया करते हो ?

जन्मे कामगारों की बस्ती में
अब महलों में इठलाया करते हो !

उलझी थी दुनिया कच्चे धागे में
बन  काती  अश़्क बहाया करते थें ।



सखी कुसुम कोठारी।
प्रकृती के मोहक रंग...

बिछे गलीचे धानी
मिले न जिसकी सानी।

बांधा घेरा फूलों ने
पीले लाल बहु गुलों ने।


सखी अनुराधा चौहान(दो रचनाएँ)
अरमानों का गलीचा बिछाए
आशा की किरण मन में जलाए
झांकती रहीं बूढ़ी आँखें
अकेली खड़ी खिड़की से
मन में ढेरों सपने सजाए
पैरों की आहट चूड़ी की खनक
शायद खत में आए कोई खबर
मायूस होकर बैठ जाती


भोर का सुखद अहसास लिए
चहक उठा जीवन भी
निकल पड़े सब घर से
जीने अपनी-अपनी ज़िंदगी

बिछाए सुनहरा गलीचा
देते दिनकर जीवन की धूप
शाम को समेटकर उजाला
क्षितिज के छोर पर गए कहीं छुप


सखी अभिलाषा चौहान( दो रचनाएँ)
खुशियों का गलीचा

गलीचा
बिछा है आज।
पड़ने वाले हैं कदम
किसी खास के।
खुल गए हैं द्वार
वर्षों की आस के।
खुशियां छलकती हैं
बजती है शहनाई।
सजे तोरणद्वार
दीपमाला झिलमिलाई।


अनमोल गलीचा

वो गलीचा
जिसे देख
यादों की बारात
चली आई।
छूते ही जिसे
उस मां की याद आई।
जिसने बड़े प्रेम से
बनाया था गलीचा।
जिसके ताने-बाने में
उसका प्रेम बसा था।



सखी अनीता सैनी 
गलीचा अपने पन का

क्यों न हम बिछा  दें 
एक गलीचा अपनेपन का  
प्रखर धूप में 
जलते अशांत चित पर 
स्नेह, करूणा  और बंधुत्व  का 

यादों के रंग में डूबा 
मखमली एहसासों से सजा 
 सजाये  ग़लीचा 
मन  के  द्वार  पर 

भाई पुरुषोत्तम सिन्हा
परत दर परत .....
परत दर परत सिमटती ही चली गई समय, 
गलीचे वक्त की लम्हों के खुलते चले गए, 
कब दिन हुई, कब ढ़ली, कब रात के रार सुने, 
इक जैसा ही तो दिखता है सबकुछ अब भी , 
पर न अब वो दिन रहा, ना ही अब वो रात ढ़ले। 

इस बार इतनी ही रचनाएँ..
अब सारे बधाइयाँ देने में लगे हैं..
नए विषय के साथ हम फिर मिलेंगे कल
यशोदा ...

22 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    शुभकामनाएँ सभी को..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. गलीचे पर बेहतरीन रचनाओं का संगम।सभू रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. गलीचे पर बेहतरीन संकलन।सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन गलीचा.... आनन्द की अनुभूति दे गई । समस्त रचनाकारों व प्रस्तुतकर्ता को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात !
    लाजवाब और उम्दा संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. कितने खूबसूरत गलीचे बिछाये गये हैं
    शोर पावों के किसी के दबाये गये हैं
    पता भी नहीं चलेगा कोई आया है कहीं से
    जाने के बाद के निशान तक मिटाये गये हैं ।

    लाजवाब सूत्रों के साथ एक खूबसूरत प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |कितने सुन्दर गलीचे बिछाए गए हैं हम कदम पर |

    जवाब देंहटाएं
  8. जी यशोदा दी
    बहुत सुंदर अंक है।
    एक श्रमिक के हाथों से जन्मा ग़लीचा किस तरह से अपनी खुबसूरती से सम्पन्न लोगों का मन बहलाता है। उनके पांव को मखमली एहसास दिलाता है।
    परंतु वह मजदूर वह निर्माता फिर भी निष्ठुर नियति के द्वारा प्रदत्त कठोर भूमि पर ही रात गुजारा करता है।
    उसके श्रम का उपहास क्यों ?
    इस ग़लीचे में अनेक सवाल छिपे हैं।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद।
    मैं कोई कवि नहीं हूँ। साहित्यकार तो दूर शुद्ध हिन्दी भी नहीं आती। फिर भी आपने प्रमुखता दी ,इससे आँखें भर आयी हैं।
    मैं तो बस रेणु दी के स्नेह के कारण कुछ लिख पढ़ लेता हूँ।
    फिर उनसे पूछता हूँ कि ठीक तो है न दी। उपहास तो नहीं होगा न ?
    पुनः प्रणाम यशोदा दी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर हमक़दम का संकलन
    बेहतरीन रचनाएँ, मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार प्रिय दी जी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर गलीचे बिछे आज हमकदम के मंच पर,सारे ही एक से बढ़कर एक रचनाओं के साथ.. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह ! अत्यंत सुन्दर सूत्रों का संकलन आज का अंक ! हर रचनाकार का गलीचा अपनी अलग कथा लिए हुए ! आनंद आ गया ! सभीको साथियों को हार्दिक बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! स्नेहसिक्त वंदन स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन रचनाऐ ,हर एक ने अपने मन के भावो से सुंदर गलीचा बुना हैं ,सादर नमस्कार सबको

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह!!बेहतरीन संकलन । सभी रचनाएँ एक से बढकर एक ।

    जवाब देंहटाएं
  15. गलीचे के मोहक रंगों की तरह खूबसूरत संकलन

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुंदर सतरंगी तानो बानो से बुना नयनाभिराम गलीचा ।सभी रचनाएं आलोकिक ।
    मेरे अति साधारण गलीचे को बिछा उसे जो मान दिया उसका हृदय तल से आभार ।
    सभी लाजवाब रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  17. कितने खूबसूरत गलीचे बिछाये गये हैं
    शोर पावों के किसी के दबाये गये हैं
    पता भी नहीं चलेगा कोई आया है कहीं से
    जाने के बाद के निशान तक मिटाये गये हैं ।

    आदरणीय यशोदा दीदी-- सच कहूं तो निशब्द हूँ सभी रचनाएँ पढ़कर | जब ये विषय हम कदम के लिए निर्धारित किया गया तो समझ नहीं पाई की इस विषय पर क्या लिखा जाएगा | मुझे तो कहीं ना कहीं ये विषय असाहित्यिक सा लग रहा था | पर जब गलीचे पर रचनाएँ आई तो मैं हैरान रह गयी ! प्रिय अनीता का अपनेपन का गलीचा हो या शशि भाई का निष्ठुर गलीचे को उद्बोधन -- सब कुछ बहुत ही मर्मस्पर्शी और शानदार !!! अभिलाषा बहन को माँ का बुना गलीचा याद आया तो अनुराधा बहन ने खुशियों के अवसर पर बिछाए गलीचे को याद किया | साधना जी ने नेता जी के पैरों के नीचे से खिसके गलीचे की कथा बड़े रोचक अंदाज में बयान कर डाली | आशा जी का सृष्टि का गलीचा प्रेरक है | सुशील जी के गलीचे की बदौलत आज की महफ़िल शानदार रही | सभी रचनाकारों को सादर सप्रेम हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | शशि भाई इस विषय पर एक विस्तृत लेख लिखना चाहते थे पर अति व्यवस्तता के चलते नहीं लिख पाए | वे गलीचे के कारीगरों की खस्ता हालत से बखूबी परिचित हैं | सुंदर संकलन के लिये आपको साधुवाद और हार्दिक शुभकामनायें | सादर --


    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत ही शानदार गलीचे लाजवाब प्रस्तुति...
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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