सखी श्वेता प्रवास पर है
आज का विशेषांक लेकर हम हैं
उपस्थित....सखी के माफिक खुशगवार
भूमिका तो नहीं लिख सकते....
पर जरूर कह सकते हैं कि छाया तो होती ही है
कभी सामने तो कभी पीछे..
छोड़ती ही नहीं साथ....खेल में भी
चलिए चलते हैं रचनाओं की ओर...
हम सब स्कूल में पढ़े हैं
बड़ा हुआ तो क्या हुआ,
जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं,
फल लागे अति दूर।
पहले पढ़ते हैं ...
कालजयी रचनाएँ ...
मूर्धन्य रचनाकारों की कलम से
प्रसवित रचनाएँ....
रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता
-महादेवी वर्मा
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नदी की बाँक पर
छाया
सरकती है
कहीं भीतर
पुरानी भीत
धीरज की
दरकती है
-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
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मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण, तुम्हारी वह छाया
जो रहती है मेरे उर में
वह सुंदर है, पावन सुंदर !
मैंने न सुना कहते तुमको
पर मेरे पूजा करने पर
जो वाणी-सुधा बरसाती है
वह सुंदर है, पावन सुंदर !
- चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
नियमित रचनाकारों की रचनाएँ.....
दीदी साधना वैद (दो रचनाएँ)
छाया ....
जीवन के मरुथल में
अनवरत कड़ी धूप में चलते चलते
तपती सलाखों सी सूर्य रश्मियों को
अपने तन पर सहने की इतनी
आदत हो गयी है कि
अब मुझे किसी छाया की
दरकार नहीं रह गयी है !
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परछाईं .....
जहाँ तुम कहोगे वहीं मैं चलूँगी
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जो चाहोगे मैं खुद को छोटा करूँगी
मैं पैरों के नीचे समा के रहूँगी !
जो चाहोगे दीवार पर जा चढूँगी
मैं तुमसे भी बढ़ कर ज़मीं नाप लूँगी !
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मौसी आशा सक्सेना
मेरा साया .....
अभी साथ नहीं है
न जाने क्यूँ ?
साया बहुत लंबा होता
आगे आगे चलता था
फिर छोटा होता गया
अब मेरे कदमों में छिप कर
अंतरध्यान हो गया है
तुम्हारी छाया ...
मेरा अस्तित्व मेरी पहचान
मेरा शरीर मेरा नाम
तुम जैसा तुम्हारी प्रतिछाया हूँ
माँ जीवन मे मेरे
तुम देह और उस देह से बनने वाली छाया हूँ मैं...
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सखी अभिलाषा चौहान (दो रचनाएँ)
दिवास्वप्न बनती छाया
घर के बुजुर्ग,
जैसे हों वृक्ष घने।
जिनकी छाया में,
पनपते संस्कार,
परिवार,रिश्ते ,
स्नेह-कमल,
प्रेम-पुष्प,
आज जैसे बन गए,
हों स्वप्न !!
छाया से घिरा जीवन ....
अनंत छायाओं
घिरा ये जीवन
कितने झेलता उतार-चढ़ाव
कभी दुख की छाया लगाती
सुख के सूर्य को लगाती ग्रहण
कभी आशंकाओं की बदली
आशाओं की किरण को
करती विलुप्त
कभी अनिष्ट,अनहोनी
बनकर छाया
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सखी अनुराधा चौहान
पिता छाया जैसे ...
तपते मरूस्थल में तरुवर के जैसे
छाया देते पिता सदा ही ऐसे
जीवन की धूप से रखते बचाकर
आगे बढ़ाते सही मार्ग दिखाकर
दिखाते नहीं कभी प्रेम अपना
उनकी डांट में छुपा जीवन का सपना
कठोरता का कभी-कभी पहनकर आवरण
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सखी अनुराधा चौहान
वृक्ष की व्यथा ....
गर्व था कभी बहुत
हरी-भरी काया पर
विशाल घना घेरा
ठंडा शीतल बसेरा
बैठते पथिक जब
मेरी ठंडी छाया में
एक दंभ महसूस
करता में अपनी शान
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सखी सुधा सिंह
लक्ष्य साधो ....
संग उसको ले चलो,
जो पंथ से भटका दिखे।
क्लांत हो, हारा हो गर वो,
साथ देना है सही।।
वृक्षों की छाया तले,
सुस्ताना है सुस्ता लो तुम।
पर ध्येय पर अपने बढ़ो,
रुकना नहीं हे सारथी।।
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अनीता सैनी
पूनम की छाँव....
उर से उर को जोड़ती
उर के कोमल तार
मानस चोला प्रीत का
स्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव
पहन चोला निखरा मनु
लगे देव दूत पूनम की छाँव
छाया .....
कहाँ पाएँ हम थूप में छाया।
कैसे ठंढी हो अपनी काया।
पहले सड़कों पर हम चलते थे।
दस कदमों पर पेड़ मिलते थे।
चलने से थक जाते थे हम।
छाया में बैठ सुस्ताते थे हम।
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तुम खुश हो न ..
कांप उठा तब दुर्बल काया
कठोर कर्म उसे न भाया
लौट के बुद्धू वापस आया
बोलो ! तुम खुश हो न ?
था आँखोंं में अंधेरा छाया
स्नेहिल स्पर्श फिर ना पाया
मृत्यु ने उसको ठुकराया
बोलो ! तुम खुश हो न ?
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भाई पुरुषोत्तम सिन्हा (दो रचनाएँ)
छाया अल्प सी वो
बुझते दीप की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....
प्रतीत होता जिस क्षण है बिल्कुल वो पास,
पंचम स्वर में गाता पुलकित ये मन,
नृत्य भंगिमा करते अस्थिर से दोनों ये नयन,
सुख से भर उठता विह्वल सा ये मन,
लेकिन है इक मृगतृष्णा वो रहता कब है पास....
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छाया का मौन ....
जाने कब टूटेगा इस मूक छाया का मौन,
प्यासे किरणों के चुम्बन से रूँधी हैं इनकी साँसे,
कंपित हृदय हैं इनके सूखे पत्तों की आहट से,
खोई सी चाहों में घुट कर मूक हुई आहों में,
सुप्त आहों में छुपी वेदना कितनी ये पूछता है कौन?
क्या टूटा भी है कभी इस व्यथित छाया का मौन?
आज बस इतना ही
कल मैं फिर मिलती हूँ
नया विषय लेकर
आना न भूलिएगा
यशोदा
बहुत सुंदर अंक एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंमुझे तो माँ (नानी) की वह स्नेह भरी छाया आज भी याद है।
प्रणाम।
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति !सभी रचनाएँ से बढ़ कर एक ।
व्वाहहहहह..
जवाब देंहटाएंसच में बेहतरीन..
शुभकामनाएँ सभी को
सादर...
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार यशोदा जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, छाया के विस्तृत स्वरूप को
हटाएंलेखनी ने साकार किया,इसके लिए रचनाकारों की कल्पना शीलता को प्रणाम
गज़ब
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतीकरण
वाह। बहुत सुंदर संकलन । सभी रचनाकारों की रचनाएँ बेहतरीन ।छाया का विचित्र चित्रण किया है ।मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर धन्यबाद।साभार।
जवाब देंहटाएंविस्मयकारी प्रस्तुति । मेरा सौभाग्य कि मैं भी इसका हिस्सा बन सका ।
जवाब देंहटाएंढेरों शुभकामनाएं । शुभ प्रभात
बहुत ही सुन्दर हमक़दम का संकलन |बेहतरीन रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
मेरी रचना को स्थान देने हेतु सहृदय आभर प्रिय यशोदा दी जी
सादर
बहुत सुन्दर संकलन। बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं से सजा संकलन बेहतरीन प्रस्तुति मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंवाह, वाह!!बहुत ही खूबसूरत संकलन ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन सादर नमस्कार दी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सूत्रों का संकलन आज की हलचल में ! मेरी दोनों रचनाओं को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सभी रचनाकारों को मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआनंद मग्न हुआ मन.
धन्यवाद यशोदा जी.
बहुत शानदार भुमिका के साथ कालजयी रचनाओं का शानदार संकलन बहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंछाया पर सभी रचनाकारों की अद्भुत प्रदर्शन सुंदर विषय सुंदर रचनाएं भी रचनाकारों को बधाई।
बहुत घनी शीतल सुखकारी छाया रचनाओं की। आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दीदी -- बहुत सुंदर मनभावन अंक | मन को आह्लादित करता | छाया कितने प्रकार की होती है आज के रचनाकारों से पूछिए | बहुत ही सार्थक परिभाषाएं गढ़ी हैं सबने | मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार | छाया वृक्ष की हो या किसी अपने की - सदा सर्वदा अनमोल होती है जिनकी शीतलता से आत्मा हमेशा सुकून पाती है और सुरक्षा से भर जिन्दगी मुस्कुराती है | सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | और आपने साहित्य के पुरोधाओं की रचनाओं को प्रस्तुति की भूमिका में सजाकर उसे बहुत ही विशिष्ट बना दिया है | हम उन पुरोधाओं की छाया मात्र भी नहीं पर उनकी ये कालजयी रचनाएँ अनमोल थाती हैं जिन्हें पढ़कर सदियों त्रस्त मन सुकून पाते रहेंगे और जीने की कला सीखते रहेंगे | आपको कोटि आभार इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए | सादर --
जवाब देंहटाएंउत्तर देंहटाएं
बहुत खूबसूरत संकलन ल
जवाब देंहटाएंहलचल के मंच की छाया में संकलित एक से बढकर एक घनेरी छायाओं का संकलन...
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार...पठनीय एवं उम्दा....
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।