शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।
आखर-आखर श्वांस पिरोई
भावों की है रंगोली
अंतर का आलोक उजासित
ज्यों केसर की है होली
समतल या पथरीली राहें
रही लेखनी बन भविता।।
वह नहीं
कभी इसकी कभी उसकी
टांग खींचते
या अपना क़द दूसरों की नज़रों में ढूँढते
बड़ा बनने की कोई वजह नहीं छोड़ते
छोटी-छोटी बातों में बड़प्पन झलकाते हैं
मिलन-बिछोह के
राज हैं उनके भी
अपने…
घर की बात घर में रहे
यही सोच कर
बादलों ने भी डाल दिया
नमीयुक्त
झीना सा आवरण
उनकी उदास सी
रिक्तता पर
महानगर को गाँव कहाँ याद आता है
पर आलिशान
महलों से उठकर
अब कहाँ
महानगर गाँव जाता है
आंगन के नाम पर
उसके पास शानदार
बालकनी जो है
पंडित शिव कुमार शर्मा- पानी की आवाज़ का नाम
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसादर..
बहुत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने और शीर्षक हेतु चयनित करने के लिए आपका असीम आभार आ. रवीन्द्र सिंह जी । सादर ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं के लिंक्स देती हलचल ! आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर आकर्षक लिंक्स का चयन सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को पांच लिंकों पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।