।।प्रातः वंदन ।।
जब उभरता है उफ़क की सुर्ख़ियों से आफ़ताब
खेलता है सरमदी नग़मों से फ़ितरत का रबाब
दौडती है पैकर ए आलम में जब रूह ए शबाब
कैफ़ में डूबी हुई होती है चश्म ए नीमखवाब
आसमान की रिफतों को छोड़कर आती है तू
तीरगी के आइनों को टोकर आती है तू
ज़िया फ़तेहाबादी
इसी खूबसूरत शायराना अंदाज के साथ आज की यानि बुधवारिय सुबहा का आगाज़ करते हैं..
नीम का पेड़
शुक युगल
एक सूनी डाल पर पत्तों के झुरमुट में छिपा सा बैठा था
ऊँघता सुस्ताता कौआ
बिना ही काम चीं-चीं करती
किसी को खोजती, बुलाती एक पागल सी..
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मत चूको चौहान
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तुमसे कोई उम्मीद नहीं
जगजीत सिंह यूं तो आधुनिक ग़ज़ल के बेताज बादशाह थे पर उन्होंने समय समय पर हिंदी फिल्मों के लिए भी बेहतरीन गीत गाए। अर्थ, साथ साथ, प्रेम गीत, सरफरोश जैसी फिल्मों में उनके गाए गीत तो आज तक बड़े चाव से सुने और गुनगुनाए जाते हैं। पर इन सब से हट कर उन्होंने कुछ ऐसी अनजानी फिल्मों के गीत भी निभाए जो..
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बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बहुत सुंदर पठनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भूमिका की पंक्तियों के साथ बहूत अच्छी रचनाओं के सूत्र संजोए हैं आपने दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
वाह अप्रतिम संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार दी
जवाब देंहटाएंआभार आपका मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीया
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