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बुधवार, 18 मई 2022

3397..अजब युग है..

 ।।प्रातः वंदन ।।

जब उभरता है उफ़क की सुर्ख़ियों से आफ़ताब

खेलता है सरमदी नग़मों से फ़ितरत का रबाब

दौडती है पैकर ए आलम में जब रूह ए शबाब

कैफ़ में डूबी हुई होती है चश्म ए नीमखवाब


आसमान की रिफतों को छोड़कर आती है तू

तीरगी के आइनों को टोकर आती है तू

ज़िया फ़तेहाबादी

इसी खूबसूरत शायराना अंदाज के साथ आज की यानि बुधवारिय  सुबहा का आगाज़ करते हैं..






नीम का पेड़

शुक युगल 

एक सूनी डाल पर पत्तों के झुरमुट में छिपा सा बैठा था 

ऊँघता सुस्ताता कौआ

बिना ही काम चीं-चीं करती

किसी को खोजती, बुलाती एक पागल सी..

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मत चूको चौहान

 शिव दर्शन पाने को आतुर 
 सदियों से बैठा नंदी
 सौ करोड़ का गौरव क्यों 
 बना हुआ अब भी बंदी

तुष्टिकरण का आंखों पर 
चढ़ा हुआ था मोतियाबिंद
धर्म संस्कृति पर हमलों से
घायल पड़ा हुआ था हिन्द

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तुमसे कोई उम्मीद नहीं

तुमसे कोई उम्मीद नहीं
फिर भी न जानें क्यों सारी उम्मीदें तुमसे ही है
तुमसे कोई ख्वाहिश नही
फिर भी न जाने क्यों सारी..
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एक शाम मेरे नाम

जगजीत सिंह यूं तो आधुनिक ग़ज़ल के बेताज बादशाह थे पर उन्होंने समय समय पर हिंदी फिल्मों के लिए भी बेहतरीन गीत गाए। अर्थ, साथ साथ, प्रेम गीत, सरफरोश जैसी फिल्मों में उनके गाए गीत तो आज तक बड़े चाव से सुने और गुनगुनाए जाते हैं। पर इन सब से हट कर उन्होंने कुछ ऐसी अनजानी फिल्मों के गीत भी निभाए जो..

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मर्द हूं, अभिशप्त हूं

मर्द हूँ, 
अभिशप्त हूँ, 
जीवन के दुखों से 
बेहद संतप्त हूँ। 
बोल नहीं सकता 
कह नहीं सकता 
सबके सामने 
मै रो नहीं सकता.
भरी भीड़ में रेंगता है हाँथ कोई..
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परिवार

मनाने लगे 

परिवार दिवस 

अजब युग 


यह तो जुड़ा

।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर भूमिका की पंक्तियों के साथ बहूत अच्छी रचनाओं के सूत्र संजोए हैं आपने दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार दी

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार आपका मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीया

    जवाब देंहटाएं

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