शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरं जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।
मेरी माँ सब
से अच्छी
इस दुनिया
में
हर सफलता है
उसकी देन मुझे
अब मेरी समझ
में आया |
तो क्या कुछ भी नहीं बदला ?
पीठ पर बांध कर बच्चा
कङी धूप में तप कर
हाथ में हथौङा लेकर
अब तक वह स्वयंसिद्धा
तोङती है पत्थर ..
मुक़द्दर भी
खौफ़ में होता,
जो मां की
बात होती है।
मां कहती
है न भूल रब को
जब अरदास
होती है।
एक गीत
-अँगारों से फूल न मांगो
नींद रहे या
रहे जागरण
कभी छोड़ना मत सपना,
मौसम कोई
राग सुनाये
तुम आशा के स्वर लिखना,
ऊँगली पकड़े चलना सीखा
कदम कदम पर
डाँट पड़ी
हाथ पकड़ अब
सुता चलाये
निर्देशों की
लगी झड़ी
स्वर्ग मिला
था मातु गोद में
सुत ये अब
भान कराये।।
जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंशिव सहाय होवे
आभार
Thanks for the comment
हटाएंसुंदर प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंThanks for th .........
जवाब देंहटाएंe post s
धन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
हटाएंरवीन्द्र जी, सुप्रभात और धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित इस विशेषांक में स्थान देने के लिए । अभी सबकी रचनाएँ पढ़ना बाकी है । फिर लौट कर आते हैं ।
सुन्दर लिंक्स सजी अच्छी प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
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