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सोमवार, 9 मई 2022

3388...अब तक वह स्वयंसिद्धा तोङती है पत्थर ...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरं जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

सोमवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।

लीजिए पढ़िए- 

मेरी माँ

मेरी माँ सब से अच्छी

इस दुनिया में

हर सफलता है उसकी देन मुझे

अब मेरी समझ में आया |

स्वयंसिद्धा

तो क्या कुछ भी नहीं बदला ?

पीठ पर बांध कर बच्चा

कङी धूप में तप कर

हाथ में हथौङा लेकर

अब तक वह स्वयंसिद्धा

तोङती है पत्थर ..

मां के साथ ..मां के बाद

मुक़द्दर भी खौफ़ में होता,

जो मां की बात होती है।

मां कहती है न भूल रब को

जब अरदास होती है।

एक गीत -अँगारों से फूल न मांगो

नींद रहे या

रहे जागरण

कभी छोड़ना मत सपना,

मौसम कोई

राग सुनाये

तुम आशा के स्वर लिखना,

मातृ दिवस विशेष

ऊँगली पकड़े चलना सीखा

कदम कदम पर डाँट पड़ी

हाथ पकड़ अब सुता चलाये

निर्देशों की लगी झड़ी

स्वर्ग मिला था मातु गोद में

सुत ये अब भान कराये।।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


13 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री राधे
    शिव सहाय होवे
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. धन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

      हटाएं
  3. रवीन्द्र जी, सुप्रभात और धन्यवाद ।
    माँ को समर्पित इस विशेषांक में स्थान देने के लिए । अभी सबकी रचनाएँ पढ़ना बाकी है । फिर लौट कर आते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक्स सजी अच्छी प्रस्तुति ....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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