।।प्रातः वंदन ।।
"सूर्योदय और
सुबह के साथ चलने वाले,
चलने वाले सूर्य और सुबह के साथ,
हमें भय नहीं रात से,
न ही उदास दिनों से,
न अँधेरे से —
हैं हम सूर्य और सुबह के साथ
चलने वाले..!!"
लैंग्स्टन ह्यूज़ (मूल रचना)
बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ (अनुवाद)
लिजिए प्रस्तुतिकरण के क्रम को आगें बढ़ातें हुए रूबरू होते हैं..
कोलाहल हृदय का
बारिश पर कविता
इमेज गूगल साभार |
न जाने कितना सतायेगी ,
सुबह भी ठीक से गुजरने न देती ,
भर #दुपहरिया आग लगायेगी ।
नदी सुखाये तालाब सूखाये,
पेड़ पौधे भी सब मुरझाये,
पशु पक्षी भी दर दर भटके ,
कितना हाहाकार मचायेगी
🌸
🌸
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
सुन्दर-सार्थक प्रस्तुति के लिए प्रस्तुतकर्ता,आदरणीय पम्मी सिंह 'तृप्ति' 'जी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। सभी रचनाकारों को भी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय पम्मी मेम मेरी रचना https://deep-007.blogspot.com/2022/05/blog-post.html?m=1 को इस अंक में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी सम्मिलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है सभी को बहुत बधाइयां ।
सादर ।
बेहतरीन प्रस्तुति
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