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गुरुवार, 12 मई 2022

3391...घर की बात घर में रहे

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।

कौन पढ़े मेरी कविता

आखर-आखर श्वांस पिरोई

भावों की है रंगोली

अंतर का आलोक उजासित

ज्यों केसर की है होली

समतल या पथरीली राहें

रही लेखनी बन भविता।।

सच में

वह नहीं

कभी इसकी कभी उसकी

टांग खींचते

या अपना क़द दूसरों की नज़रों में ढूँढते

बड़ा बनने  की कोई वजह नहीं छोड़ते

छोटी-छोटी बातों में बड़प्पन झलकाते हैं

ख़ामोशी

मिलन-बिछोह के

राज हैं उनके भी

अपने

घर की बात घर में रहे

यही सोच कर

बादलों ने भी डाल दिया

नमीयुक्त

झीना सा आवरण

उनकी उदास सी

रिक्तता पर

महानगर को गाँव कहाँ याद आता है

पर आलिशान

महलों से उठकर

अब कहाँ

महानगर गाँव जाता है

आंगन के नाम पर

उसके पास शानदार

बालकनी जो है

पंडित शिव कुमार शर्मा- पानी की आवाज़ का नाम

वाटर सुनने के बाद यूँ हुआ कि संगीत की किताब का पहला पन्ना खुल गया हो जैसे. इसके बाद उन्हें ढूँढकर सुना, खूब सुना. मन खुश हुआ तब सुना, परेशान हुआ तब सुना. दोस्तों की महफिल में सुना, तन्हाई में सुना. पानी की आवाज़ का दूसरा नाम हैं शिव कुमार शर्मा जी.

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने और शीर्षक हेतु चयनित करने के लिए आपका असीम आभार आ. रवीन्द्र सिंह जी । सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं के लिंक्स देती हलचल ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्‍छी हलचल प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर आकर्षक लिंक्स का चयन सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को पांच लिंकों पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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