शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अरुण चंद्र रॉय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
मेरे सामने चींटियाँ
चल रही हैं एक दूसरे के पीछे
हम सभी चले जा रहे हैं कहीं
करते हुये भरोसा
हवाएं ख़ामोश हैं,
पत्ते गुमसुम,
पसीने की जैसे
नदी बह रही है,
पर आज मौसम अच्छा है,
और मैं
अविकसित या अल्पविकसित ही रह कर
उनकी दुआओं ने बुने थे आसमान,
हम उसी छत के नीचे हैं खड़े हुए
श्राद्ध के दिन आते हैं वो भाव से पृथ्वी पर
श्रद्धा के सुमन अर्पित हैं,
ग्रहण कर लें वो आशीष देते हुए
हर सब्जी के दामों में,वे लगे दो-दो रुपए घटवाने।
एक बूढ़ी सब्जी वाली, जो दिखती चेहरे की भोली।
मुट्ठी भर धनिया-पत्ती का वह, दाम दो रुपए बोली।
पति महोदय हंसकर बोले,मुफ्त में दो धनिया पत्ती।
बूढ़ी सब्जी वाली के चेहरे पर,साफ दिखी आपत्ति।
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
पढ़ती बाद में हूँ
पहले शेयर करती हूं
शानदार अंक
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति.आभार
जवाब देंहटाएंसरस,सरल धारा में बहती हुई सुंदर रचनाएं ।संदेशपूर्ण और सामयिक भी ।सभी लिंक्स पर हो आई ।बहुत आभार आपका रवीन्द्र सिंह यादव जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेशात्मक रचनाएं। उम्मदा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही उम्दा और सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
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